डॉ. ब्रजमोहन जावलिया को श्रद्धांजलि

उदयपुर। संप्रति संस्थान की ओर से मेवाड़ के प्रसिद्ध इतिहासकार और बहुभाषाविद डॉ. ब्रजमोहन जावलिया को श्रद्धांजलि दी गई और उनके योगदान का स्मरण किया गया।
संस्थान के सचिव डॉ. तुक्तक भानावत ने बताया कि डॉ. जावलिया को याद करते हुए डॉ. महेंद्र भानावत ने उनको मृदुभाषी और मैत्रीपूर्ण संबंधों को निभाने वाला कहा। उन्होंने कहा कि वे लेखन और अनुसंधान के प्रति आजीवन समर्पित रहे। शाहपुरा की अनेक सृजनात्मक विरासत उनके रुधिर में रही। साहित्य अकादमी सहित अनेक संस्थाओं के लिए उन्होंने अपनी अविस्मरणीय सेवाएं दीं।
इतिहासकार डॉ. श्रीकृष्ण जुगनू ने कहा कि महाराणा कुम्भा के संगीतराज और अन्य ग्रंथों के बारे में उनकी स्थापनाओं ने शोधार्थियों का मार्ग प्रशस्त किया। उन्होंने मेवाड़ी की व्यापारिक और व्यवहारिक शब्दावली पर जो कार्य किया, वह हमेशा याद किया जाएगा।
वरिष्ठ इतिहासकार डॉ. देव कोठारी ने उनके प्राच्य विद्या के क्षेत्र में योगदान को स्मरणीय बताया और कहा कि राजस्थानी, हिंदी और संस्कृत भाषा की अज्ञात पांडुलिपियों के सूचीपत्र तैयार करने में उनकी सेवाएं बहुत उपयोगी हैं। इसी आधार पर देश भर के विद्वानों ने मेवाड़ के ग्रंथों पर अनुसंधान किए। उनको महाराणा मेवाड़ फाउण्डेशन सम्मान मिला और अनेक संस्थाओं ने बड़े पुरस्कार प्रदान किए। वे जयपुर स्थित महाराजा सवाई मानसिंह (द्वितीय) संग्रहालय के पोथीखाना के अध्यक्ष रहे। वरिष्ठ इतिहासकार डॉ. राजेंद्रनाथ पुरोहित ने उनके साथ अपनी सेवाओं को याद किया और उनकी स्मरण शक्ति की प्रशंसा की। इतिहासकार डॉ. चंद्रशेखर शर्मा ने उनके अप्रकाशित लेखन को समग्र रूप में सामने लाने की जरूरत बताई और कहा कि वे शोधार्थियों के लिए कोष की तरह माने जाते थे। उनकी लिखित और संपादित अनेक पुस्तकें उपयोगी हैं। मेवाड़ के राजवंश के स्रोत के रूप में राणा रासो और खुमान रासो ही नहीं, मेवाड़ का 17वीं सदी का इतिहास : सइकी, बघेरा का इतिहास आदि बहुत शोध सम्मत हैं।
उल्लेखनीय है कि डॉ. जावलिया का सोमवार रात 96 वर्ष की आयु में उदयपुर में देहावसान हो गया।

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