राष्ट्रीय वेबिनार : इतिहासकारों ने तर्कों से स्पष्ट किया ….” स्वाधीनता के लिए देशी राजाओं ने मेवाड़ के परचम तले लड़ाई की मुगलों से “

उदयपुर। हल्दीघाटी युद्ध की विजय के 450वें वर्ष प्रारंभ के उपलक्ष में आयोजित वेबिनार में इतिहासकारों का मत था कि यह युद्ध इतिहास में देशी स्वाधीनता प्रेमी शक्तियों द्वारा मुगल और उनके खेमे के खिलाफ लड़ा गया था और उसमें आक्रांताओं को किसी स्तर पर सफलता नहीं मिली।
मोहनलाल सुखड़िया विवि एवं इण्डस इंटरनेशनल रिसर्च फाऊंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस वेबिनार के संयोजक डॉ. पीयूष भादविया (सहायक आचार्य, इतिहास विभाग एवं मानद निदेशक, आईआईआरएफ) ने बताया कि सर्वप्रथम विभागाध्यक्ष प्रो. प्रतिभा ने अतिथियों व वक्ताओं का स्वागत किया।
मुख्य अतिथि प्रो. मंजू बाघमार (राज्यमंत्री, पीडब्ल्यूडी, महिला व बाल विकास एवं बाल अधिकारिता विभाग, राजस्थान सरकार) ने कहा कि महाराणा प्रताप की रणनीति, पराक्रम और वीरता ने ऐतिहासिक विजय का स्वरूप प्राप्त किया। यह युद्ध छोटे और सीमित संसाधनों वाले राज्य द्वारा एक बड़े साम्राज्य को टक्कर देने का प्रतीक है। युद्ध में झाला मान, चेटक घोड़ा और रामप्रसाद हाथी जैसी शौर्यगाथा उल्लेखनीय है। महाराणा प्रताप केवल एक योद्धा नहीं, एक विचार हैं — जो हमें यह सिखाते हैं कि जब तक आत्मबल जीवित है, तब तक कोई पराजित नहीं कर सकता। इतिहास उन्हें नहीं भुला सकता जो राष्ट्र के लिए जिए और जूझे। कर्नल टॉड ने इसे ‘भारत की थर्मोपल्ली’ कहा। यह युद्ध वैश्विक स्तर पर भी महत्त्व रखता है। वर्तमान संदर्भ में ऑपरेशन सिंदूर की तुलना हल्दीघाटी की रणनीति से की जानी चाहिए। उन्होंने आज के दौर में राष्ट्रवाद, इतिहास-लेखन और शोध की भूमिका पर बल दिया। महाराणा प्रताप और शिवाजी जैसे नायकों से युवा पीढ़ी को आदर्श लेने की जरूरत बताई।
विशिष्ठ अतिथि मेजर जनरल सुधाकर, वीएसएम (से.नि.) ने वैश्विक स्तर पर सामरिक एवं हल्दीघाटी की सैन्य रणनीति की तुलना की। उनके सभी छापामार युद्ध सफल रहे। इतिहासकार डॉ. श्रीकृष्ण “जुगनू” ने अरावली की घाटियों में लड़े गए इस युद्ध की भूमिका की चर्चा करते हुए कहा कि इस युद्ध में जान सस्ती और इज्जत मंहगी थी। इसे मेवाड़-मुगल संघर्ष की बजाय स्वाधीनता प्रेमियों और गुलाम बनाने की मानसिकता वाली ताकतों के बीच लड़ा गया संग्राम मानना उचित है, क्योंकि मेवाड़ के साथ मालवा व ग्वालियर, चुनार भी थे। इस युद्ध में मुगल किसी प्रकार की कोई लूट नहीं कर पाए, न कंगूरे खंडित कर सके।
महाराणा प्रताप पर देश की प्रथम पीएच. डी. उपाधि प्राप्तकर्त्ता इतिहासकार प्रो. चन्द्रशेखर शर्मा ने हल्दीघाटी युद्ध का विस्तृत वर्णन किया और युद्धनीति के बारे में बताया कि यह युद्ध भारतीयों और अभारतीयों का संघर्ष था। महाराणा प्रताप ने स्वयं हल्दीघाटी को युद्धभूमि के रूप में चुना था। उनके राज्यारोहण, राजनयिक प्रयासों, युद्ध के पश्चात् मुगल दरबार में भय के हालातों एवं बदांयूनी की पुस्तक मुन्तख़ब उत तवारीख़ में प्रताप विजय की चर्चा की। साथ ही प्रो. शर्मा ने दावा किया कि मुगलों की जीत का कोई प्रमाण मौजूद नहीं है, हल्दीघाटी युद्ध के सभी प्राथमिक स्रोत महाराणा प्रताप की विजय ही बताते हैं।
डॉ जे. के. ओझा ने हल्दीघाटी युद्ध में महाराणा प्रताप के प्रमुख सहयोगी के विषय की चर्चा करते हुए विभिन्न संदर्भों के आधार पर लगभग 145 नामों का विवरण दिया।
प्रताप गौरव केन्द्र के शोध निदेशक डॉ. विवेक भटनागर ने हल्दीघाटी युद्ध में प्रयुक्त अस्त्र-शस्त्र एवं रसद व्यवस्था विषय पर चर्चा करते हुए बताया की युद्ध में तोपों का प्रयोग नहीं हुआ, बंदूक का प्रयोग भी मुगलों की तरफ से हुआ। उन्होंने इस युद्ध से पहले की विभिन्न रणनीतियों व व्यवस्थाओं की जानकारी दी।
आईआईआरएफ के पूर्व अध्यक्ष कर्नल (डॉ.) विजयकांत चेंजी (से. नि.) ने हल्दीघाटी युद्ध में महाराणा प्रताप की बेमिसाल युद्ध रणनीति विषय पर बताया कि इस स्थान विशेष के होने से ही महाराणा प्रताप की जीत हुई। डॉ. अजय मोची ने हल्दीघाटीः एक भौगोलिक चक्रव्यूह के विषय को मानचित्रों के माध्यम से चर्चा की। स्वाति जैन ने हल्दीघाटी युद्ध का साहित्य में वर्णन विषय पर चर्चा करते हुए बताया कि यह एक जनयुद्ध था। विभिन्न लेखकों एवं पुस्तकों का विवरण प्रस्तुत किया। डॉ. मनीष श्रीमाली ने हल्दीघाटी युद्ध का प्रभाव विषय पर चर्चा करते हुए बताया कि यह युद्ध साम्राज्यवादी शक्ति के विरूद्ध संघर्ष है। भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन को भी प्रेरणादायी प्रताप ने प्रभावित किया।
अध्यक्षता कर रहे आईआईआरएफ के अध्यक्ष ब्रिगेडियर संदीप कुमार वीएसएम (से. नि.) ने कहा कि स्वाधीनता को हर कीमत पर बचाना आवश्यक है और यही कार्य महाराणा प्रताप ने किया। यह युद्ध भारतीय इतिहास में मील का पत्थर है।
अन्त में संकायाध्यक्ष प्रो. दिग्विजय भटनागर ने धन्यवाद ज्ञापित किया एवं तकनीकी सहयोग मोहित शंकर सिसोदिया ने प्रदान किया। वेबिनार में देश के कई विद्वान, इतिहासकार, सैन्य अधिकारी, शोधार्थी एवं विद्यार्थी उपस्थित दर्ज की।

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