उदयपुर : नौकरी पैसे दे सकती है, पर शिक्षा सम्मान देती है, ये कहती हैं अलवर के गांव रामगढ़ की सना, जो उस गांव में ब्याही हैं जहां महिलाओं पर काफ़ी पाबंदियां और रोक-टोक है। महिलाओं का कमाने के लिए बाहर जाना उचित नही माना जाता । 12वीं तक की पढ़ाई के बाद सना की शादी हो गई थी और आगे की पढ़ाई का उसका सपना अधूरा रह गया, लेकिन शिक्षा के प्रति सना के जज़्बे ने रास्ता ढूंढ़ लिया और 7 साल के बाद उसके मन में शिक्षा की लौ फिर जागी। सना का मानना है कि निहार शांति पाठशाला फनवाला ने मुझे आगे की शिक्षा का रास्ता दिखाया हैं।
सना ने अपने संघर्ष और जज़्बे की कहानी बयान करते हुए कहा- एक तरफ़ मेरी मां मानती थी कि लड़कियों को घर सम्भालना है, उन्हें ज़्यादा पढ़ाना-लिखाना नहीं चाहिए, वहीं मेरी ख़ुशनसीबी है कि मेरी सास ने मेरी पढ़ने व घर की आमदनी में हाथ बटाने की चाह को सम्मान दिया। आज जब लोग मुझे मैम कहकर बुलाते हैं तो सबसे ज़्यादा गर्व मेरी सास को ही होता है। निहार शांति पाठशाला फनवाला ने मुझे आगे की शिक्षा का रास्ता दिखाया।
सना से जब निहार शांति पाठशाला फनवाला के इंगलिश कोर्स के बारे में पूछा गया कि अंग्रेज़ी ही क्यों? सना ने कहा- अंग्रेज़ी ही एक ऐसी भाषा है जिससे हम जैसे लोग डरते हैं। पढ़ाई के दौरान मैं भी इंगलिश से बहुत डरती थी, अपने इस डर को दूर करने का इससे बेहतरीन ज़रिया क्या हो सकता था। आज मुझमें कॉन्फिडेंस आ गया है और मैं अपने गांव के 30 बच्चों को इंगलिश सिखाती हूं। मैंने गांव की और भी महिलाओं को इस कोर्स के लिए प्रेरित किया क्योंकि वो सीखेंगी तो गांव के और भी बच्चों को सिखा सकेंगी। बच्चों के भविष्य की ख़ातिर महिलाओं को इससे जुड़ना चाहिए। एक वक़्त था मुझे स्मार्ट फ़ोन और व्हाट्सएप चलाना नहीं आता था, लेकिन इस डिजिटल कोर्स के लिए मैंने सब सीखा। मेरे ससुरालवालों ने घर के कामकाज व बच्चों की देखभाल में मेरा पूरा सहयोग किया। आज मेरी शादी को 9 साल हो चुके हैं. दो बच्चे हैं| मैं और पढ़ना चाहती हूं।
आज मैं पढ़ा भी रही हूं, कमा भी रही हूं और हर महीने मैं अच्छी रकम कमाती हूं। अब तो हर महीने उतना कमाती हूं, जितना पहले मैं पूरे साल में सिर्फ़ एक बार कमा पाती थी, क्योंकि पहले खेतों में कटाई के दौरान मैं गेहूं काटने का काम करती थी, तब जाकर साल में एक बार 5000 कमा पाती थी और अब मैं हर महीने 5000 हज़ार कमाती हूं। अब खेती के साथ-साथ मेरे पास आय का एक और ज़रिया है। इस तरह मेरी आय में इज़ाफ़ा हुआ है और यह फर्क आया है मेरी ज़िंदगी में| मैं आगे बढ़ रही हूं।
अब स्टेबल इनकम आती है तो ज़ाहिर है आंखों में सपने भी पलने लगते हैं। मैंने अपने पैसों से स्मार्ट फोन ख़रीदा। अब मैं अपने बच्चों को बेहतर स्कूल में भेज सकती हूं। वो हिंदी मीडियम में पढ़ रहे हैं, पर मैं उन्हें इंगलिश मीडियम में पढ़ाऊंगी. घर में इंवर्टर लगवाना चाहती हूं। अभी मोटरसाइकिल है लेकिन आगे चलकर कार ख़रीदने की भी चाह है। माना एक दिन में आसमान नहीं छू सकते लेकिन धीरे-धीरे ज़िंदगी को और बेहतर बना सकते हैं, क्योंकि अब हम आगे बढ़ने का सोच सकते हैं।