डीएस गु्रप की जल सरंक्षण योजनाओं ने राजस्थान के भूजल स्तर में सुधार किया

– 5,316 हेकटेयर के उपचार से करीबन 9.64 लाख क्यूबिक मीटर जल भंडारण और पुनर्भरण क्षमता किया गया है-
-उदयपुर में जल भंडारन एवं पूनर्भरन क्षमता का विस्तार-

उदयपुर। डीएस ग्रुप की महत्वाकांक्षी परियोजना ‘वाटर इकोनॉमिक जोन’ की शुरूआत वर्ष 2018 में वल्र्ड वॉटर डे के अवसर पर की गई, जो कि उदयपुर जिले के अलसीगढ़ और कुराबड़ के 11,385 हेक्टेयर  क्षेत्र में विस्तृत है और इसका लक्ष्य 26 गांवों के 24,000 लोगों तक पहुंचने का है। कम्पनी द्वारा 5,316 हेक्टेयर भूमि को उपचारित कर 9.64 लाख क्यूबिक मीटर जल भंडारण और पुनर्भरण क्षमता तैयार कर चुकी है। डीएस ग्रुप एक जल संवेदी संगठन है। कम्पनी ने अपने बिजनेस फिलोसॉफी और लोकाचार के लिए जल संरक्षण को प्रमुख बनाया है। इसी का नतीजा है कि जल संरक्षण इसकी कॉरपोरेट सामाजिक भागीदारी (सीएसआर) के एक प्रमुख ध्यानाकर्षण क्षेत्रों में से एक रहा है।
डीएस ग्रुप ने अपनी पहली जल संरक्षण संयन्त्र परियोजना सीकर में वर्ष 2013 में शुरू की तब से लेकर अब तक इसने सीकर जिले के दीपावास, मोकावास और अजीतगढ़ गावों में 23 चेक डेम्स का निर्माण किया। कम्पनी ने बुंदेलखण्ड में महोबा और बांदा में जल संरक्षण परियोजनाएं भी विकसित कीं इसके अलावा डूंगरपुर में सुरता, करौली, उदयपुर, कुराबड़ और अलसीगढ़, सीकर में दीपावास, मोकलवास और अजीतगढ़ में समूह की जल संरक्षण परियोजनाएं विकसित कीं हैं।
डीएस ग्रुप राजस्थान में पहले ही करीब 20,83,855 घनमीटर पानी अबतक संरक्षित कर चूके है जोकि 617 हेक्टेयर को कवर कर 33,000 लोगों के जीवन को लाभान्वित कर रहा है।
केन्द्रीय जल आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत को अधिकतम 3,000 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी की जरूरत हर साल होती है जबकि वर्षा से इसे 4,000 बिलियन क्यूबिक मीटर जल प्राप्त होता है। लेकिन देश की क्षमता सालाना वर्षा जल के संरक्षण की क्षमता केवल 8 प्रतिशत ही है, जिसे विश्व की सबसे कम क्षमता कहा जा सकता है, यही कारण है कि यहां पानी की कमी हमेशा एक मुद्दा बना हुआ है।
राजस्थान में पानी की कमी सबसे बड़ी समस्या है। इसमें 13.88 प्रतिषत भारत का कृषि योग्य क्षेत्र, 5.67 प्रतिशत जनसंख्या और देश का लगभग 11 प्रतिशत पशुधन है, लेकिन इसमें केवल 1.6 प्रतिशत सतही जल और 1.70 प्रतिशत भूजल है। जल संरक्षण परियोजनाएं राज्य में सामाजिक और आर्थिक स्थितियों में काफी सुधार करती हैं।
कम्पनी अपने परिचालनों में भी जल संरक्षण के बारे में काफी विवेकशील रही है, और कम्पनी का नोएडा स्थित मुख्यालय जीरो डिस्चार्ज ईकाई है। कम्पनी ने जल संरक्षण के लिए अपने परिसर में 9 डिस्चार्ज पिट्स, आरओ संयन्त्र, एफ्लुएंट एवं सीवेज सिस्टम जैसे उपायों पर निवेश किया है। कूलिंग टॉवर, एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट्स से निकलने वाले पानी के डिस्चार्ज का सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स में इलाज किया जाता है और बागवानी के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है। 13 लीटर प्रति मिनट (एलपीएम) से 3.18 लीटर प्रति मिनट (एलपीएम) पर पानी के प्रवाह की दर को कम करने के लिए वॉशरूम में पानी के नल के एरेटर को बदल दिया गया है। 9 लीटर से 7 लीटर तक पानी के फ्लशिंग को कम करने के लिए सभी पानी की क्लोसेट को समायोजित किया गया है।
रूफ टॉप रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम, आर.ओ. पानी और प्राकृतिक रीचार्जिंग तालाब/गड्ढों के रिचार्जिंग और जल पुनर्भरण की पहल जैसे जल संरक्षण की पहल ने पानी को बचाने में मदद की है। डीएस ग्रुप की सभी इकाइयों में कमी, बचाओ, रिसाइकिल रीयूज एवं रिचार्ज की फिलोसॉफी को अपनाया जा रहा है। रिसाइकिलिंग और रीयूज एवं रिचार्ज के कारण आज डीएस ग्रुप 301,644 किलो लीटर पानी फ्लशिंग, बागवानी और सिंचाई के लिए उपयोग कर पा रहा है। करीब 91,400 किलो लीटर पानी तालाबों से एकत्र किया जाता है और उसका उपयोग सिंचाई के उद्देश्य से किया जाता है और करीब 15,044 किलो लीटर वर्षा जल का उपयोग बागवानी के लिए, वर्षा जल संरक्षण पिट्स के माध्यम से नोएडा स्थित मुख्यालय में किया जाता है।
केंद्रीय जल आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, भारत 2050 तक लगभग 1.66 बिलियन की आबादी तक पहुंच जाएगा। भोजन की वार्षिक आवश्यकता भी 250 मिलियन टन से अधिक होगी। इसका मतलब यह भी है कि पानी की मांग में भी काफी वृद्धि होगी।

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