महाराणा फतहसिंह की 175वीं जयन्ती

उदयपुर : मेवाड़ के 73वें एकलिंग दीवान महाराणा फतहसिंह जी की 175वीं जयंती महाराणा मेवाड़ चैरिटेबल फाउण्डेशन, उदयपुर की ओर से सिटी पेलेस म्यूजियम स्थित राय आंगन में उनके चित्र पर माल्यार्पण व पूजा-अर्चना कर मंत्रोच्चारण के साथ दीप प्रज्जवलित किया गया तथा आने वाले पर्यटकों के लिए उनकी ऐतिहासिक जानकारी प्रदर्शित की गई। महाराणा का जन्म पौष शुक्ल द्वितीया, विक्रम संवत 1906 (वर्ष 1849 ई.) को हुआ था।
महाराणा मेवाड़ चैरिटेबल फाउण्डेशन, उदयपुर के मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ. मयंक गुप्ता ने बाताया कि महाराणा फतहसिंह असाधारण प्रतिभा सम्पन्न व्यक्तित्व के धनी थे। उनकी शरणागतवत्सलता प्रसिद्ध थी। महाराणा फतहसिंह एकमात्र ऐसे महाराणा थे, जिन्होंने 1903 और 1911 ई. में दो बार दिल्ली दरबार में भाग नहीं लिया, लेकिन ब्रिटिश सरकार के साथ अच्छे संबंध भी बनाए रखे। 1887 ई. में उन्हें जी.सी.एस.आई. की उपाधि प्रदान की गई। प्रथम युद्ध के दौरान महाराणा फतहसिंह ने मेवाड़ रीसाला की स्थापना की, जो बाद में मेवाड़ लांसर्स में परिवर्तित हुआ।
महाराणा ने लगभग अपने 45 वर्षों तक अदम्य उत्साह, मनोयोगपूर्वक अपने विचारों के अनुकूल निरापद राज्य किया। वे प्रतिवर्ष साधु संतों एवं विद्वानों के आदर-सत्कार में सहस्रों रुपये खर्च करते थे। उन्होंने अपने सुशासन काल में परम बुद्धिमत्ता का परिचय देते हुए सामुदायिक विकास, सिंचाई व्यवस्था तथा वन-संवर्द्धन आदि महत्ता के कारण वे मेवाड़ के अपराजेय और प्रतापी महाराणा कहलाये।
मेवाड़ की समृद्धि के लिये नदियों तालबों के रख-रखाव के साथ ही महाराणा ने उदयपुर के उत्तर की ओर देवाली गांव के पास का छोटा तालाब सन् 1795 की अतिवृष्टि से पूर्ण रूप से नष्ट हो गया था, का सन् 1889 में पुनः निर्माण करवाकर झील का स्वरूप दिया गया। जिसका नाम फतह सागर रखा गया। आहड़ नदी को फतह सागर से जोड़ने वाली चिकलवास नहर का निर्माण महाराणा फतहसिंह जी के शासन काल सन् 1890 में किया गया। विश्व में पहली बार आज से लगभग 134 वर्ष पूर्व तत्कालीन महाराणा फतहसिंह जी ने चिकलवास नहर में 13 अगस्त सन् 1890 में पानी प्रवाहित करवाकर नदी सगंम परिकल्पना को जन्म दिया अतः हम कह सकते है कि मेवाड़ ही विश्व में एकमात्र ऐसा राज्य रहा है जहाँ नदियों को आपस में जोड़कर नदी संगम परिकल्पना विश्व के समक्ष प्रस्तुत की गई।
महाराणा के शासनकाल में बनवाये महल एवं भवन आदि तत्कालीन निर्मित शिवनिवास पैलेस, फतेह प्रकाश पैलेस, प्रसिद्ध दरबार हाल तथा चित्तौड़गढ़ का फतेह प्रकाश महल आदि निर्माण कला के अनुपम अनुकृतियां हैं, उन्होंने अनेक नये भवनों का निर्माण तथा प्राचीन स्मारकों को जीर्णोद्धार भी करवाया। जो उनकी निर्माण-कुशलता प्रियता एवं सुरुचि की परिचायक है। महाराणा कलाप्रेमी होने के साथ-साथ चित्रकारों के भी बड़े प्रशंसक थे। तथा वे वास्तुकला को भी बहुत प्रोत्साहन देते थे।

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