उदयपुर। मेवाड़ के 59वें एकलिंग दीवान महाराणा जयसिंहजी की 369वीं जयंती महाराणा मेवाड़ चेरिटेबल फाउण्डेशन, उदयपुर की ओर से मनाई गई। महाराणा का जन्म पौष कृष्ण एकादशी, विक्रम संवत 1710 (वर्ष 1653 ई.) को हुआ था।
महाराणा मेवाड़ चेरिटेबल फाउण्डेशन, उदयपुर के प्रशासनिक अधिकारी भूपेन्द्रसिंह आउवा ने बताया कि महाराणा जयसिंह बहुत ही शान्तिप्रिय, दानी, धर्मनिष्ठ और उदारवादी थे। प्रमुख निर्माण कार्यों में महाराणा ने देवाली गांव के पास एक तालाब बनवाया लेकिन बांध अधिक ऊंचा न होने तथा जल स्रोत कम होने के कारण उसका जल दूर-दूर तक नहीं फैल सकता था। जिस पर महाराणा फतहसिंह ने सुदृढ़ ऊँचा बाँध बँधवाया जिसका नाम फतहसागर रखा। महाराणा जयसिंह ने दूसरा तालाब थूर गांव के पास बनवाया जो थूर तालाब कहलाता है। इन तालाबों की प्रतिष्ठा वि.सं. 1744 में हुई थी।
महाराणा जयसिंह ने उदयपुर से 32 मील दक्षिण-पूर्व में विश्व विख्यात मानव निर्मित मीठे पानी की जयसमुद्र नामक झील का निर्माण वि.सं. 1748 (ई.स. 1687-1691) में करवाया जिसमें गोमती, झामरी, रूपारेल और बगार नामक चार छोटी नदियों का जल एकत्र होकर दो पहाड़ों के बीच ढेबर नामक नाके में होकर निकलता है, जहां बांध बांधने के कारण लोग उसको ढेबर का तालाब भी कहते है।
इस झील के भरने पर इसकी लम्बाई 9 मील से ज्यादा और चौड़ाई 6 मील से अधिक है। इसका बांध दो पहाड़ों के बीच संगमरमर का बना हुआ है, जो 1000 फुट लम्बा और 95 फुट ऊंचा है। इसके पीछे एक समानान्तर दूसरा बांध भी बना है जो 1300 फुट लम्बा है। बांध पर 6 सुन्दर छतरियां बनी हुई है तथा छतरियों के नीचे एक ही पत्थर के बने 6 सुन्दर हाथी स्थापित किये गये हैं। वि.सं. 1748 ज्येष्ठ सुदी पंचमी (ई.स. 1691, 22 मई) को महाराणा जयसिंह जी ने तालाब की प्रतिष्ठा करवाई और स्वर्ण का तुलादान किया, इस बांध पर महाराणा जयसिंह जी का ही बनवाया हुआ संगमरमर का नर्मदेश्वर नामक शिवालय भी है, यह शिवालय उनके समय पूरा न हो सका था। वि.सं. 1932 (ई.स. 1875) की अतिवृष्टि को देखकर महाराणा सज्जनसिंह जी ने दोनों बांधों के बीच के विस्तृत खड्डे का 2/3 हिस्सा पत्थर, मिट्टी और चूने से भरवा दिया। बांध की दक्षिणी पहाड़ी पर महाराणा जयसिंह जी के महल है यह झील बहुत ही सुन्दर, रमणीय एवं विशाल है।