बुजुर्ग बोझ नहीं हमारी संपत्ति है : रामनाथ कोविन्द

तारा संस्थान के 12 वर्ष पूर्ण होने पर भव्य समारोह में शामिल हुए पूर्व राष्ट्रपति

उदयपुर (डॉ. तुक्तक भानावत)। बुजुर्ग बोझ नहीं, वे एसेट हैं। वे अनुभव का खजाना हैं। वे हमारी सम्पत्ति है। यही नहीं बुजुर्गों का होना एक आश्वासन है। एक परिवार में बुजुर्गं की बहुत उपयोगिता होती है। हर काल और समय में उनकी उपयोगिता सार्र्थक होती है। हमें यह नहीं भूलना चाहिये कि बुजुर्गों में अनुभव का धन और आत्मविश्वास का बल होता है। उक्त उद्गार तारा संस्थान उदयपुर के 12 वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर मां द्रोपदी देवी आनंद वृद्धाश्रम में सोमवार को आयोजित समारोह में देश के 14वें राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने व्यक्त किये। इससे पूर्व तारा संस्थान की संस्थापक अध्यक्ष कल्पना गोयल एवं संस्थापक सचिव दीपेश मित्तल ने पूर्व राष्ट्रपति का स्वागत किया।


पूर्व राष्ट्रपति कोविन्द ने कहा कि हर परिवार की अपनी अलग कहानियां होती है। कोई कहानी छोटी होती है, कोई बड़ी होती है। उन्हें सुनने और सुनाने में ही हमारा जीवन गुजर जाता है। इसलिए हमें यह सोचना चाहिये कि हमने आज तक केवल लिया ही लिया है। हनमे समाज को दिया क्या है। जिस दिन आप में देने का भाव आ जाएगा, यकीन मानिये जितना आनन्द लेने में आ रहा था, उससे दुगुना आनन्द देने में आएगा।


उन्होंने मेवाड़ की पवित्र पावन धरती की महानता को दर्शाते हुए कहा कि इस धरती पर महाराणा प्रताप, भामाशाह और मीरांबाई जैसी महान विभूतियां हुई हैं। उन्हें देश ही नहीं दुनिया मेें महानता प्रदान की जाती है। उदयपुर के लोग अपनी सभ्यता और संस्कृति के लिए कभी भी पीछे नहीं हटते हैं। इस धरा की कहानियां प्रेरणादायी हैं। महाराणा प्रताप, भामाशाह और मीरांबाई का स्थान भारत के इतिहास में सर्वोच्च है। उन्होंने मानव जीवन की श्रेष्ठतम परम्पराओं को अपने-अपने हिसाब से जीया और निभाया है। महाराणा प्रताप ने प्रजा के साथ ही अपने राष्ट्र और धर्म संस्कृति की रक्षा के लिए घास की रोटी तक खाई लेकिन इस पर आंच नहीं आने दी।


उन्होंने कहा कि आज तो हम ऐसा सोच भी नहीं सकते जैसा महाराणा प्रताप ने करके दिखाया था। भामाशाह ने अपने धन का सदुपयोग करते हुए सारा धन राष्ट्र और धर्म संस्कृति की रक्षा के लिए दान कर दिया। वे चाहते थे कि कोई भी व्यक्ति भूखा ना रहे और कोई भी गरीबी की वजह से धर्म नहीं छोड़े। मीरांबाई की भक्ति परम्परा ही इतनी उच्च कोटि की थी कि उन्होंने श्रीकृष्ण पर ही विश्वास किया चाहे उन्हें जहर ही क्यों न पीना पड़ा। मेवाड़ की इसी परोपकार, राष्ट्रधर्म संस्कृति की रक्षा की भावना ने उन्हें हमेशा प्रभावित किया है। दीन-दुखियों की सेवा करना ही ईश्वर की सेवा करने के समान है।
पूर्व राष्ट्रपति ने कहा कि तारा संस्थान के संचालक भी उन्हीं के वंशज लगते हैं जो आज इतने बड़े स्तर पर बुजुर्गों और पीडि़तों की सेवा में लगे हुए हैं। उन्होंने कहा कि आज के दौर में परिवार में बढ़ते विघटन एवं भौतिक सुख सुविधाओं की प्राप्ति की महत्वाकांक्षाओं के चलते घर के युवा अक्सर घर के बुजुर्ग माता-पिता को अकेला छोड़ कर रोजगार और आर्थिक लाभ के लिए चले जाते हैं। भौतिक महत्वाकांक्षाएं उन्हें ऐसा करने पर मजबूर करती हैं। इसमें उनकी भी कोई गलती नहीं है। उन्हें जीवनयापन के लिए ऐसा करना ही पड़ता है। इसी तरह से बुजुर्गों के घर में अकेले रहने का दूसरा कारण यह भी सामने आता है कि पहले हमारे यहां संयुक्त परिवार की परम्परा हुआ करते थी लेकिन धीरे-धीरे बदलते दौर में यह परम्परा लगभग खत्म होती गई। इस पर हमें मन्थन करने की जरूरत है। इसकी शुरूआत भी स्वयं से है करनी होगी। सामाजिक और पारीवारिक जिम्मेदारियों को भी समझना होगा।


तारा संस्थान की संस्थापक अध्यक्ष कल्पना गोयल ने स्वागत उद्बोधन देते हुए कहा कि ऐसा पुनीत कार्य करने की प्रेरणा उन्हें अपने पिता से मिली। पहले वह बुजुर्गों की ऐसी स्थितियां देख कर बहुत भावुक हो जाया करती थी लेकिन धीरे-धीरे इनके साथ रह कर इनकी सेवा करने का अवसर मिला तो अब उनमें हिम्मत ओर हौंसला पैदा हो गया है और इन सभी की सेवा करने में उन्हें आनन्द आता है। पहले इसकी शुरूआत छोटे रूप में की थी और आज यह बड़े रूप में जैसा भी है सभी के सामने है। समारोह में नारायण सेवा संस्थान के संस्थापक कैलाश मानव ने भी अपने विचार व्यक्त किये। कार्यक्रम का संचालन संस्थापक सचिव दीपेश मित्तल ने किया।
समारोह में तारा संस्थान की और से संचालित ‘मस्ती की पाठशाला’ के बच्चों ने भावपूर्ण प्रस्तुति देते हुए राम आएंगे भजन पर नाट्य का मंचन किया। इसमें प्रभु श्रीराम, माता सीता एवं लक्ष्मण के वनागमन के दौरान माता सबरी द्वारा बड़े ही आदर के साथ उन्हें अपने आश्रम में ले जाने और झूठे बैर खिलाने के दृश्यों को देखकर पूर्व राष्ट्रपति कोविन्द सहित हर कोई भावुक हो गया। इसके बाद बुजुर्ग फैशन शो हुआ जिसमें बुजुर्गों ने लता मंगेशकर, आर्य भट्ट, वीर सावरकर, कल्पना चावला, अटल बिहारी वाजपेयी, डॉ. भीमराव अम्बेडकर, रानी लक्ष्मीबाई, स्वामी विवेकानन्द, सरदार वल्लभभाई पटेल एवं मेरीकॉम के चरित्र को जीवन्त किया।
इससे पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द मां द्रोपदी देवी आनंद वृद्धाश्रम में एक-एक कर बुजुर्गों से मिले और उनसे बातचीत की। उन्होंने कई बुजुर्गों से उनके हालचाल जाने और लगातार यही पूछते रहे कि आप यहां कैसा अनुभव कर रहे हैं। आपको यहां पर कोई तकलीफ तो नहीं है। श्री कोविन्द बुजुर्ग महिला-पुरूषों से इस कदर घुलमिल गये कि उनके साथ हंसी-ठहाकों से पूरा परिसर गूंज उठा।
कोविन्द जब संस्थान के बुजुर्गों के मेडिकल वार्ड में पहुंचे तो वहां पर उनकी सारी मेडिकल सुविधाओं की जानकारी ली एवं बुजुर्गों के स्वास्थ्य के बारे में जाना। इसी वार्ड में बुजुर्ग बृजकिशोर शर्मा से जब श्री कोविन्द मिले और उनका हालचाल जानने के बाद वहां से जाने लगे तब उन्हें पता लगा कि ये गाना बहुत अच्छा गाते हैं। यह सुन कर श्री कोविन्द के कहने पर बृजकिशोर ने ‘जाने वो कैसे लोग थे जिन्हें प्यार ही प्यार मिला गीत गाया। यह सुनकर कोविन्द मुस्कुराये और कहा कि यह गाना आपके ऊपर लागू नहीं होता है। यह सुनकर उन्होंने एक और गाना ‘छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिए ये मुनासिब नहीं आदमी के लिए’ गाया।

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