डॉ. तुक्तक भानावत
दीवाली से नया वर्ष शुरू हो जाता है। अत: व्यापारी अपनी बहियां बदल देते हैं। नये रूप में खाते-पानड़े शुरू करने के लिए दीवाली को लक्ष्मी-पूजन के साथ नई बही का पूजन भी किया जाता है। बही खोलते ही प्रारम्भ में कुंकुम का सातिया मांडा जाता है। दवात में पुरानी स्याही की जगह नई स्याही भरने के लिए उसे भीतर-बाहर से पीली, लाल अथवा ईंटी मिट्टी से खूब रगड़ा जाकर आक के पत्तों से चमकाया जाता है। दवात पीतल की विविध तरह की होती है। लिखने के लिए बरू की नई कलम तैयार की जाती है।
दवात की स्याही सामान्य स्याही नहीं होकर विशेष रूप से तैयार की जाती है। जिन घरों में लक्ष्मी-पूजन, बही-पूजन होता, वहां महीने- पन्द्रह दिन पूर्व से स्याही तैयार करने का उपक्रम प्रारम्भ कर दिया जाता। यह स्याही साल भर वैसी ही चमक दिये रहती। देशी-पद्धति से स्याही तैयार करने में बड़ी मेहनत लगती। इसकी कई दिनों तक घुटाई की जाती।
यह स्याही काली होती जो शुभ मानी जाती और इसके लिखे अक्षर वर्षों तक वैसी ही चमक लिये रहते। इसमें सर्वाधिक तो काजल ही काम आता। काजल के लिए एक बड़ा मिट्टी का दीपक जलाया जाता। उसकी लौ से काजल प्राप्त करने के लिए उस पर एक दूसरा दीपक औंधा रख दिया जाता जिससे काजल तैयार होता रहता। स्याही के अनुपात को देखते जितना काजल जरूरी होता उतना प्राप्त होने तक दीपक जलता रहता। दीपक को दीवाण्या कहते। रूई को हथेली में लम्बी फैला दूसरे हाथ से बंटी देते बत्ती यानी वाट तैयार करते।
काजल के साथ निश्चित मात्रा में सादा पानी, धावड़ी गूंद का पानी, गर्म लाख का पानी, लीला थोथा एवं अन्य चीजें मिलाकर प्रतिदिन घुटाई की जाती। यह स्याही स्वाभाविक तौर पर बाजारू स्याही से हर दृष्टि से अधिक गुणवत्ता लिये होती। इससे लिखावट भी स्पष्ट चमकदार तथा वर्षों तक बनी रहने वाली होती।
ऐसी स्याही अन्यों को भी वितरित की जाती। प्रत्येक गांव में ऐसे सेठ, साहूकार होते जो बड़ी मात्रा में स्याही तैयार कराते। अपने पिताश्री का साया उठने पर मैंने घर में तो लक्ष्मी-पूजन नहीं देखा किन्तु इतना याद है कि दीवाली के एक दिन पूर्व दवात की सफाई करने के बाद मैं उसे कभी गांव के सेठ चन्दनमलजी दक तो कभी हीरालालजी मुर्डिया की दुकान पर रख आता और दीवाली के दूसरे दिन वह दवात ले आता। उनकी पूजा में हमारी दवात भी रखी जाती। उसके लच्छा बान्धा जाता और पूरी स्याही से भर दी जाती। वर्ष भर उससे बहीड़ों, बहियों में मांग-तांग तथा हिसाब की खतनी खताते। पीतल की यह दवात 150-200 वर्ष पुरानी है। उससे भी बड़ा कलशनुमा गुंबजदार उसका ढक्कन है। वह दवात आज भी बड़े यत्न से मेरे पास सम्भाली हुई है। आंख में डालने का काजल तैयार करने के लिए घी का दीपक जलाकर उस पर उतरी मटकी की ठीकरी उल्टी पाड़ देते। रूई के साथ नीम के सफेद ताजे फूल मिलाकर बाती बनाई जाती। जो काजल पड़ता उसमें उचित मात्रा में घी मिलाकर उसे एकमेक कर दिया जाता। यह काजल मुख्यत: बच्चों की आंखों में लगाया जाता और इसी से उसके चेहरे-गाल-ललाट पर अंगुली से मामे लगाये जाते।
दीवाली पर दवात के साथ बही पूजन
अल्टीमेट पार्टी डेस्टिनेशन के लिए ‘क्लब रोडीज’ लॉन्च
हिंदुस्तान जिंक इण्डिया प्रोक्योरमेंट लीडरशिप फोरम एंड अवार्ड्स 2020 से सम्मानित
पिम्स, उमरड़ा में एनआरपी (नीयोनेटल रिससिटेशन प्रोग्राम) वर्कशॉप आयोजित
डॉ. त्रिलोक शर्मा एनएफडीपी के प्रदेश अध्यक्ष बने
कानोड़ मित्र मंडल का वार्षिक स्नेहमिलन समारोह 29 को
उदयपुर शहर सीट के लिए गौरव वल्लभ ने दाखिल किया नामांकन
Radisson Blu Palace Resort & Spa, Udaipur, recognized as the Best Wedding Hotel in Udaipur at To...
मुख्यमंत्री युवा संबल योजना में उदयपुर नंबर वन रैंक पर पहुंचा
HDFC Bank Expands SME Payment Solutions with Launch of Business Credit Card Series for Self-Employed...
नारायण सेवा में निर्जला एकादशी पर सेवा अनुष्ठान
ओसवाल संदेश का लोकार्पण
हिंदुस्तान जिंक द्वारा आयोजित वेदांता जिंक सिटी हाफ मैराथन का इवेंट पोस्टर और रेस डे जर्सी लॉन्च