उदयपुर। मेवाड़ में संसार को इतिहास लेखन ही नहीं, इतिहास के धर्म और मर्म की प्रेरणा अपने चरित्र से दी है। यह प्रदेश हमेशा प्रणभ्य रहा है क्योंकि भगवान सूर्य से लेकर रघुवंश को कीर्तिमय करने वाले चरित्र इसी कुल में जाये-जन्मे और जन-जन के लिए प्रेरक बने। यह बात महाराणा मेवाड़ चेरिटेबल फाउण्डेशन, उदयपुर के ट्रस्टी लक्ष्यराजसिंह मेवाड़ ने सिटी पेलेस में डॉ. श्रीकृष्ण ‘जुगनू’ द्वारा संपादित और अनुवादित महाराणा ‘जयसिंहगुणवर्णनम्’ पुस्तक के विमोचन अवसर पर कही। पुस्तक की रचना पं. रणछोड़ भट्ट ने महाराणा जयसिंहजी के कृतित्व और व्यक्तित्व को केन्द्र में रखकर जयसमंद के निर्माणकाल के दौरान की थी। लगभग 300 वर्षों से अनुपलब्ध इस गं्रथ को डॉ. ‘जुगनू’ ने लंदन से मंगवाकर तैयार किया।
लक्ष्यराजसिंह मेवाड़ ने कहा कि नित्य नए स्रोतों के सामने आने से इतिहास के अंधकार में उजाला होता रहता है। शोध करने वालों का मार्ग प्रशस्त होता रहता है। देशभर में मेवाड़ इस अर्थ में गौरवान्वित है कि सबसे ज्यादा शिलालेख, सर्वाधिक संख्या में ताम्रपत्र और साहित्यिक स्रोत यहाँ से मिले हैं। उन्होंने कहा कि मेवाड़ के राजवंश का 1400 वर्षों का इतिहास शिलालेखों से प्रामाणित है और यहाँ सूर्य और चंद्रवंश सभी का लेखन हुआ है। इसी भूमि को एकलिंग माहात्म्य, पृथ्वीराज रासो, राणा रासो, रायमल रासो आदि सहित नगर वर्णन की गजलों, सईकी, वृक्षायुर्वेद, हस्त्यायुर्वेद जैसी कृतियों के संपादन का श्रेय है। मेवाड़ के जलदाता रहे महाराणाओं में 59वें श्रीएकलिंग दीवान महाराणा जयसिंह का अकाल एवं सूखे से निपटने के लिए वर्षा जल के संचय, प्रबंधन एवं संरक्षण में अद्वितीय योगदान रहा। महाराणा ने उदयपुर से 32 मील दक्षिण-पूर्व में मानव निर्मित मीठे जल की विश्व विख्यात जयसमुद्र नामक झील का निर्माण करवाया। महाराणा ने वि.सं. 1748, ज्येष्ठ सुदी पंचमी को इस सुन्दर झील की प्रतिष्ठा करवाई और अपने पिता महाराणा राजसिंह (प्रथम) की परम्परा का निर्वहन करते हुए स्वर्ण का तुलादान करवाया।
इस अवसर पर डॉ. श्रीकृष्ण ‘जुगनू‘ ने कहा कि मेवाड़ के महाराणा जयसिंह और अमरसिंह (द्वितीय) के बारे में नवीनतम पुस्तक हम सबके लिए शोध का मार्ग प्रशस्त करेगी।
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