भारतीय सिनेमा कला का एक अलग ही क्षेत्र है : डॉ. मृत्युंजयसिंह

हिंदी साहित्य-सिनेमा-समाज तथा अन्य माध्यम पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न

उदयपुर।
भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद एवं मोहनलाल सुखाडिय़ा विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के संयुक्त तत्वावधान में ‘हिन्दी साहित्य-सिनेमा-समाज तथा अन्य माध्यम’ पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी शनिवार को सम्पन्न हुई। आयोजन सचिव डॉ. नीता त्रिवेदी ने बताया कि इसमें तीन सत्र तकनीकी सत्र सिनेमा तथा अन्य माध्यमों का सैद्धान्तिक एवं तकनीकी पक्ष पर आयोजित किये गये। सत्र की अध्यक्षता ओएसडी बंगाल सरकार, लेखक एवं निर्देशक डॉ. मृत्युंजयसिंह ने की। संचालन डॉ. मुन्नाकुमार पाण्डे ने किया।
अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉ. मृत्युंजयसिंह ने कहा कि भारतीय सिनेमा कला का एक अलग ही क्षेत्र है। विभिन्न कलाओं की तरह फिल्म निर्माण भी एक कला है। डॉ. मृत्युृन्जय ने फिल्म निर्माण की विभिन्न थ्योरीज से भी श्रोताओं को अवगत कराया। इसी के अन्तर्गत उन्होंने नारीवादी फिल्म सिद्धान्त पर भी चर्चा की जिसमें थप्पड़, मर्दानी, गंगू बाई आदि शामिल हैं। हमारे अपने अन्धकार हमारे बाधक हैं। अदृश्य चीजों को सिनेमा दृशव्य बनाता है। फिल्म निर्माता भी भावों से समाज के सरोकारों से जुड़ता है।
राष्ट्रीय संगोष्ठी के प्रथम सत्र के अध्यक्ष प्रो. संजय दुबे एवं प्रो. अशोक कामले तथा मुख्य वक्ता प्रो. आशीष सिसोदिया एवं प्रो. विशाल विक्रम सिंह थे। इस सत्र का संचालन प्रो. नवीन नंदवाना ने किया। प्रो. अशोक कामले ने साहित्य कैसा होना चाहिए तथा उसकी भाषा कैसी होनी चाहिए और सिनेमा की विकास यात्रा पर अपने विचार व्यक्त किये।


वक्ता प्रो. आशीष सिसोदिया ने आजकल की फिल्मों का निर्माण एक निश्चित एजेंडे के मुताबिक होने पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि आलोचक भी आजकल जिसकी आलोचना करनी चाहिए, उस पर लिखने से हिचकते हैं। उन्होंने चिंता जाहिर की कि शुद्ध हिंदी में जो गाने लिखे जाते हैं, उन्हें पर्दे पर अक्सर मजाकिया लहजे में पेश किया जाता है।
प्रो. विशाल विक्रम ने बताया की समाज में सब कुछ मौजूद है। अच्छा भी और बुरा भी। सिनेमा और साहित्य का समाज के जिस हिस्से से संबंध है केवल वही हिस्सा समाज का साहित्य एवं सिनेमा में प्रदर्शित होता है बाकी का नहीं। प्रो. संजय दुबे ने बताया कि किस तरह से सिनेमा को देखा और दिखाया जाता है। इस पर भी विचार करने की आवश्यकता है। सिनेमा को अच्छे दर्शक की आवश्यकता है। सत्र के संचालक प्रो. नवीन नंदवाना ने धन्यवाद ज्ञापित किया।
दूसरे सत्र में सत्यवती कॉलेज दिल्ली विवि के सहायक आचार्य डॉ. सन्देश महाजन ने कहा कि मैंने अपना जीवन सिनेमा देखने में लगाया। सिनेमा भी साहितय ही है। सिनेमा इस दुनिया का सबसे खूबसूरत छलावा है। सौन्दर्यबोध हर व्यक्ति का अलग- अलग होता है। सिनेमा जादू है और हम सब इसके जादू से प्रभावित होते हैं। डॉ. महाजन ने आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के सिनेमा में उपयोंग से अवगत कराया।
मोहनलाल सुखाडिय़ा विश्वविद्यालय की सहायक आचार्य डॉ. दीपा सोनी ने कहा कि भारत फिल्म निर्माण की दृष्टि से दुनिया में पहले स्थान पर है। पुराने समय में फिल्म बनाने में कई साल लग जाते थे। वर्तमान में तकनीकी विकास के कारण फिल्म एक साल में ही तैयार हो जाती है। हिन्दी सिनेमा के प्रगति की चार अवस्थाएं थीं। 1940 से 1960 का समय स्वर्णिम काल था। 1960 से 1980 में इसकी दूसरी अवस्था प्रारम्भ हुई। तीसरी अवस्था 1980 से 2000 तक रही एवं चौथी अवस्था सन 2000 से प्रारम्भ हुई जो अब तक जारी है। अभी 2डी एवं 3डी फिल्में भी बनी। धीरे-धीरे फिल्म के किरदारों में, दशा एवं दिशा में सभी में बदलाव देखने को मिला। फिल्म की सफलता में मुख्य भूमिका निर्देशक, प्रोड्यूसर, फिल्म वितरक आदि सभी की होती है। विश्व में फिल्म उद्योग से प्राप्त आय में भारत का हिस्स मात्र एक प्रतिशत है। आज की फिल्मों में कंटेंट की जरूरत है। वर्तमान में फिल्मों का बजट बढ़ता जा रहा है और लाभ घटता जा रहा हे। फिल्म निर्माता को फिल्म निर्माण हेतु कई कानूनी औपचारिकताएं भी पूरी करनी होती है। भारत में फिल्मों पर टेक्स भी ज्यादा लगता है। कई भाषाओं में फिल्म के बनने से भी नुकासान होता है। फिल्म निर्माताओं को समाज व साहित्य के साथ कदमताल मिलाकर फिल्में बनानी चाहिये।


सत्र के दौरान भानु प्रिया ने अंग्रेजी में द केस ऑफ रिप्रजेंटेंशन ऑफ इंडिया विषय पर पत्र वाचन किया और इसे हिन्दी में समझाया।
सत्र में उदयपुर टेल्स की इंटरनेशनल स्टोरी टेलिंग फेस्टिवल की सह संस्थापक सुष्मितासिंह ने कहा कि समाज में जो कुछ भी होता है उसकी परछाई हम साहित्य में देखते हैं। हमारी सोच को बदलने में मुंशी प्रेमचन्द के साहित्य का बहुत बड़ा योगदान है। समाज में स्त्री को भी पुरूष के समान ही दर्जा मिले तभी समाज प्रगति कर सकता है। समाज अपनी रफ्तार से चलता है और साहित्य भी उसके साथ ही चलता है। इसलिए साहित्य को पढऩे, समझने और उसे अपने जीवन में उतारे की जरूरत है।
समापन पूर्व संवाद सत्र हुआ जिसका संचालन निदेशक राजस्थान इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल जयपुर सोमेन्द्र हर्ष ने किया। उन्होंने संगीतकार दिलीप सेन से सवाल किया कि फिल्म को हिट कराने में संगीत का महत्वपूर्ण योगदान होता है। इस पर दिलीप सेन ने कहा कि जब तक फिल्में रहेंगी संगीत रहेगा। संगीत फिल्म के रीढ़ की हड्डी होती है। पहले के दौर मेें संगीत फिल्मों की मांग होती थी। उस समय सिचुऐशन के हिसाब से गीत संगीत को तैयार किया जाता था लेकिन आज के दौर में ऐसा लगता है जैसे फिल्म में संगीत को ठूंसा जा रहा है। संगीत को सिखने के लिए कहीं जाने की जरूरत नहीं होती है क्योंकि वह आपके आसपास ही मिलता है।
वक्ता आदित्य ओम ने कथा एवं पटकथा के बारे में शोधार्थियों एंव विद्यार्थियों के साथ महत्वपूर्ण जानकारियां साझा की। उन्होंने कहा कि शब्द दिल पर गहरी चोट या गहरा घाव कर सकते हैं लेकिन संगीत तो आत्मा को परमात्मा से जोडऩे वाला होता है। संगीत से कभी किसी को चोट नहीं पहुंचती है। फिल्म में बैकग्राउण्ड संगीत भी होता है। जो बात एक हजार शब्दों से भी नहीं समझाई जा सकती है वह मात्र संगीत की एक धुन से समझ में आ सकती है। फिल्म अगर शरीर है तो संगीत उसकी आत्मा है। फिल्म निर्देशक चिन्मय भट्ट एवं गीतकार कपिल पालीवाल ने कहा कि इस सृष्टि का संचालन तीन चीजों से होता है और वे हैं सुर, लय और ताल। इन तीनों को मिलाकर ही संगीत बनता है। इन तीनों में से अगर लय बिगड़ गई तो बहुत कुछ बिगड़ जाता है। उन्होंने शोधार्थियों ओर विद्यार्थियों से आह्वान किया कि वे हमेशा नया सोचें और नया करने की कोशिश करें। गुरू के सानिध्य में रहें। बिना गुरू के ज्ञान सम्भव नहीं होता है।
समापन सत्र के अंत में डॉ. नीता त्रिवेदी एवं डॉ. नीतू परिहार ने संगोष्ठी में सम्मिलित हुए सभी अतिथियों, वक्ताओं, श्रोताओं एवं शोधार्थियों-विद्यार्थियों का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि इस संगोष्ठी की सफलता सभी के सम्मिलित प्रयासों से हुई है। डॉ. आशीष सिसोदिया ने संगोष्ठी का प्रतिवेदन पढक़र सुनाया।  

Related posts:

मुख्यमंत्री ने उदयपुर के लाभार्थियों से किया संवाद

मोटोरोला ने रेज़र 40 अल्ट्रा और रेज़र 40 लॉन्च किए

हिंदुस्तान जिंक में 53वां राष्ट्रीय सुरक्षा सप्ताह आयोजित

पिम्स हॉस्पिटल, उमरड़ा में गले की गांठ का सफल ऑपरेशन

जिंक स्मेल्टर देबारी द्वारा कोरोना वायरस के नियन्त्रण के लिए मदद की पहल

नारायण सेवा में ' फागोत्सव '

पिम्स हॉस्पिटल में आंख की गांठ का सफल ऑपरेशन

हर्निया पर राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस में 150 से अधिक सर्जन्स ने साझा किए अनुभव

Hindustan Zinc Brings 23rd Edition of Smritiyaan– Musical Extravaganza to Remember

जिंक को माइनिंग और मेटल सेक्टर में विश्व स्तरीय सस्टेनेबिलिटी इंडेक्स में तीसरा स्थान

Mobil partners with the most awaited action thriller ‘Vikram Vedha’

लोकसभा आम चुनाव- 2024 : प्रत्येक विधानसभा के लिए लगेंगी 14-14 टेबल

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *