मेवाड़ आरंभकाल से ही धर्म-संस्कृति के संरक्षण के लिए तत्पर रहा है और आगे भी रहेगा : लक्ष्यराजसिंह मेवाड़

उदयपुर : श्रीकृष्ण जन्माटमी के उपलक्ष्य में शिवदल मेवाड़ की मटकी फोड़ प्रतियोगिता नेताजी सुभाषचंद्र बोस चौराहा, मल्लातलाई में मेवाड़ पूर्व राजपरिवार के सदस्य लक्ष्यराजसिंह मेवाड़ के मुख्य आतिथ्य में हुई। मेवाड़ ने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण की मेवाड़ पर हमेशा असीम कृपा रही है। यहां श्रीकृष्ण भक्ति के रंग में सराबोर बच्चों, युवाओं, महिलाओं और बुजुर्गों को देखकर बेहद खुशी हो रही है, क्योंकि मेवाड़ आरंभकाल से ही धर्म और संस्कृति के संरक्षण के लिए तत्पर रहते हुए धर्म ध्वजा को फहराता आ रहा है और आगे भी फहराता रहेगा। मेवाड़ की कृष्ण भक्ति का प्रमाण यह है कि करोड़ों श्रद्धालु श्रीनाथजी को अपनी आत्मा में बसाए रखते हैं, लेकिन श्रीनाथजी अपने ह्रदय में मेवाड़ को बसाए रखते हैं। इतिहासकारों ने कई बार कहा कि मेवाड़ ने श्रीनाथजी की रक्षा की, संरक्षण दिया, लेकिन मेरा मानना है कि मेवाड़ इतना बड़ा नहीं है, क्योंकि श्रीनाथजी चाहते तो वे मेवाड़ नहीं, देश नहीं, बल्कि दुनिया में जहां चाहते वहां जाते और उनका चक्का वहां फंस जाता। लेकिन यह मेवाड़ का सौभाग्य है कि श्रीनाथ बाबा ने मेवाड़ में विराजने का निर्णय लिया। हम लोगों को श्रीनाथजी की चरण सेवा का सौभाग्य मिला।

मेवाड़ ने झीलों का निर्माण कराकर 500 साल पूर्व पेश की देश-दुनिया में जल संरक्षण-संवर्धन की मिसाल : मेवाड़  

यूटीडीएफ की श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर पीछोला झील के उदय श्याम मंदिर घाट, पंचदेवरिया घाट, गणगौर घाट और लाल घाट पर एक साथ महाआरती मेवाड़ के पूर्व राजपरिवार के सदस्य लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ के मुख्य आतिथ्य में हुई। इस अवसर पर लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ ने कहा कि मेवाड़ ने आज  से 500 साल पहले देश-दुनिया में जल संरक्षण-संवर्धन की मिसाल पेश करने के लिए झीलों व अन्य अहम जलाशयों का विशेष तकनीक के साथ निर्माण किराया। इस बारिश में जलराशि से लबालब जलाशयों पर मेवाड़वासी जल महोत्सव जैसी खुशी मना रहे हैं। बारिश के दिनों में विदेशी जल वैज्ञानिक जब उदयपुर के जल संरक्षण का अध्ययन करने आते हैं तो यह जानकर हैरान रह जाते हैं कि यहां प्रतिवर्ष 18-20 हजार करोड़ लीटर पानी सहेजा जाता है। जबकि उदयपुर जिले की जरूरत महज 11 हजार करोड़ लीटर पानी ही है। यह मेवाड़ की जल संरक्षण-संवर्धन के लिए जमीनी स्तर पर दूरदर्शिता के साथ किए गए कामों का जीवंत प्रमाण है। हमारे पुरखों द्वारा स्थापित इन झील-जलाशयों का वर्तमान में संरक्षण और संवर्धन के लिए प्रत्येक मेवाड़वासी को आगे आना होगा। जन जागरुकता के लिए ऐसे धार्मिक आयोजन होते रहना चाहिए।

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