उदयपुर। महाराणा मेवाड़ चैरिटेबल फाउण्डेशन, उदयपुर के न्यासी डॉ. लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ के निर्देशन में फाउण्डेशन की ओर से महाराणा संग्राम सिंह प्रथम पर राष्ट्रीय स्तर की संगोष्ठी का आयोजन सिटी पैलेस में रखा गया, जिसमें उदयपुर के इतिहासकारों, विद्वानों, शोधार्थियों के साथ ही विक्रम युनिवर्सिटी, उज्जैन, राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर के प्रतिभागियों की उपस्थिति रही।
फाउण्डेशन के मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ. मयंक गुप्ता ने मेहमानों का स्वागत करते हुए फाउण्डेशन की योजना और संगोष्ठी आयोजन पर अपने विचार प्रस्तुत किये। विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के इतिहासकार डॉ. प्रशांत पौराणिक ने महाराणा सांगा के मालवा अभियानों से मालवा की तत्कालीन राजनीतिक परिस्थितियों पर गहन प्र्रकाश डाला।
उदयपुर के इतिहासकार डॉ. श्रीकृष्ण जुगनू ने महाराणा संग्राम सिंह कालीन मेवाड़ के ताम्रपत्रों पर प्रकाश डालते हुए बताया कि राणा सांगा के समय में राणा ने ब्राह्मणों, चारणों, मंदिरों के साथ ही देवरों के लिये कई भू-दान किये, जिनमें लोकदेवता देवनारायण जी के देवरों के लिये गुर्जर जाति के भोपांे को भी कई जगह भूमि दान की गई। उन्होंने बताया कि राणा सांगा एक ऐसे शासक थे जिनके छत्र तले मध्य भारत के शासक अपना लक्ष्य सफल होते देखते थे। इसी कारण राणा सांगा को कई लेखों में समस्त राजाओं का मुकुटमणि कहा गया। जुगनू ने ताम्रपत्रों के साथ मेवाड़ के मंदिरों के रजत पत्रों पर भी प्रकाश डाला।
मेवाड़ के इतिहासकार डॉ. जे.के. ओझा ने नवीन शोध के तहत सांगा कालीन ताम्रपत्र का उल्लेख करते हुए बताया कि सांगा ने पुष्करना ब्राह्मण धर्मदास जी को भूमि दान का ताम्रपत्र भेंट किया जिससे उस गांव का धरावला नाम हुआ। डॉ. ओझा ने डूंगला, बिलोदा, भानाखेड़ी आदि के शिलालेखों और ताम्रपत्रों का उल्लेख करते हुए उन्हें इतिहास के महत्वपूर्ण स्रोत बताए। डॉ. प्रियदर्शनी ओझा ने राणा सांगा का ऐतिहासिक जीवन वृत्त पर प्रकाश डाला। डॉ. मनीष श्रीमाली ने अपने व्याख्यान में राणा सांगा की कूटनीतियों पर विचार रखते हुए बताया कि दिल्ली के इब्राहिम लोदी को हराकर भी राणा ने दिल्ली पर शासन नहीं किया। सांगा ने अपनी कूटनीति के तहत ही मालवा के महमूद को कैद कर अपने पास रखा और 6 माह बाद आधा राज्य देकर उसे मालवा भेज दिया।
फाउण्डेशन की अनुसंधान अधिकारी स्वाति जैन ने खानवा और बयाना के वर्तमान स्थिति और वहां के किले, पहाड़ी के साथ ऐतिहासिक प्रमाणों पर प्रकाश डाला। फाउण्डेशन के प्रकाशन विभाग के गिरिराज सिंह ने महाराणा सांगा को सूर्यवंशी परम्परा में शरणागत को शरण देने वाला सम्राट बताया। जयपुर की डॉ. नीकी चतुर्वेदी और उदयपुर की अनुसंधान कर्ता अनुराधा श्रीवास्तव ने राणा सांगा के प्रारम्भिक जीवन दर्शन पर और शोधार्थी कल्पेश ने महाराणा संग्राम सिंह प्रथम को एक कुशल रणनीतिकार बताया।