उदयपुर। घर में पहली संतान हुई, हर्ष का वातावरण थ। किन्तु वह स्थाई नहीं रह पाया। बच्चे ने जन्म तो लिया, लेकिन शारीरिक विकृति के साथ। बाएं पांव में घुटने के नीचे वाले हिस्से में हड्डी थी ही नहीं। पांव मात्र मांस का लोथड़ा था। राजस्थान के राजसमंद जिले की खमनोर तहसील के मचींद गांव निवासी किशनलाल की पत्नी राधाबाई ने उदयपुर के बड़े सरकारी अस्पताल में 2014 में पुत्र को जन्म दिया। डाॅक्टरों ने शिशु की उक्त स्थिति को देखते हुए घुटने तक बायां पांव काटना जरूरी समझा। उन्होंने माता-पिता को बताया कि यदि ऐसा नहीं किया गया तोे बच्चे के शरीर में संक्रमण फैल सकता है। माता-पिता ने दुःखी मन से जन्म के तीसरे ही दिन बच्चे का पांव काटने की स्वीकृृति दी। मजदूरी करके परिवार चलाने वाले किशनलाल ने बताया कि करीब 2 माह बाद पांव का घाव सूखा और वे बच्चे को घर ले आए। पिछले सात साल बच्चे की दिव्यांगता को देखते हुए किस तरह काटे और कैसी पीड़ा झेली इसका वे शब्दों में बयां नहीं कर सकते। ज्यों-ज्यों बच्चा बड़ा होता गया उसका दुःख भी बड़ा होता गया। सन् 2020 में उन्होंने नारायण सेवा संस्थान का निःशुल्क कृत्रिम अंग लगाने का टी.वी. पर कार्यक्रम देखा था। जो उन्हें उम्मीद की एक किरण जैसा लगा।
संस्थान अध्यक्ष प्रशान्त अग्रवाल ने बताया कि दीपक को लेकर उसके परिजन संस्थान में आए थे। तब कृत्रिम पैर लगाया गया। उम्र के साथ लम्बाई बढ़ने पर कृत्रिम पांव थोड़ा छोटा पड़ गया। जिसे बदलवाने हेतु शुक्रवार को दीपक अपने मामा के साथ आया। उसे कृत्रिम अंग निर्माण शाखा प्रभारी डाॅ. मानस रंजन साहू ने उसके नाप का कृत्रिम पांव बनाकर पहनाया। वह अब खड़ा होकर चल सकता है।