सत्यम शिवम सुन्दरम का साक्षात् स्वरूप है श्रीकृष्ण

‘कृष्ण साहित्य रू विविध संदर्भ’ पर राष्ट्रीय संगोष्ठी शुरू

उदयपुर। मोहनलाल सुखाडिया विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग द्वारा ‘कृष्ण साहित्य रू विविध संदर्भ’ पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन बप्पा रावल सभागार अतिथि गृह में शुक्रवार को हुआ। प्रारंभ में श्रीकृष्ण भजन मोरे श्याम राधे श्याम की लाजवाब प्रस्तुति विशाल राठौड़ एवं निषाद पांडे द्वारा दी गई। अतिथियों ने गणपति की प्रतिमा पर दीप प्रज्वलित कर पूजा अर्चना की। उसके बाद कुलगीत का स्वरगान हुआ। सभी अतिथियों का उपरना पगड़ी एवं सांवरिया सेठ का प्रसाद भेंट कर स्वागत अभिनंदन किया गया।


उद्घाटन समारोह के मुख्य अतिथि जगद्गुरु रामानंदाचार्य राजस्थान संस्कृत विवि, जयपुर, के कुलपति प्रो. राम सेवक दुबे थे। मुख्य वक्ता राजस्थान ब्रजभाषा अकादमी के पूर्व अध्यक्ष एवं कृष्ण साहित्य मर्मज्ञ डॉ. कृष्णचंद्र गोस्वामी ‘विभास’ एवं विशिष्ट अतिथि विधि महाविद्यालय की डीन डॉ. राजश्री चौधरी थीं। संचालन सुविवि के हिंदी विभाग की सह आचार्य डॉ. नीता त्रिवेदी ने किया।


स्वागत उद्बोधन देते हुए संगोष्ठी संयोजक एवं विभागाध्यक्ष डॉ. नीतू परिहार ने कहा कि संगोष्ठी के विषय अनुरूप आज पूरा परिसर कृष्णमय हो गया है। श्रीकृष्ण भारतीय संस्कृति के आदर्श हैं, बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी हैं, तत्ववेदा एवं कर्मयोगी हैं। योगीराज श्रीकृष्ण के बारे में जितना कहा जाए, बोला जाए, शोध किया जाए कम है। श्रीकृष्ण की सभी लीलाएं अद्भुत हैं। हर दिन हर पल श्रीकृष्ण मनमोहक है। कर्मयोगी हो, योगीराज हो चाहे महायोद्धा के रूप में हो, श्रीकृष्ण हर काल में प्रेरणादायी हैं।
मुख्य अतिथि प्रो. रामसेवक दुबे ने अपने उद्बोधन की शुरुआत संस्कृत के श्लोक ‘यदा यदा ही धर्मस्य’.. से करते हुए कहा कि जब-जब भी धर्म को हानि होती है तब-तब पृथ्वी पर भगवान अवतरित होते हैं। उन्होंने श्रीकृष्ण की रासलीला, माखनलीला, श्रीकृष्ण चरित्र पर विस्तृत प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि सत्यम शिवम सुंदरम के साक्षात स्वरूप हैं श्रीकृष्ण। श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पूजा को महत्व दिया। हम सभी को उनके भक्ति एवं कर्म मार्ग का अनुसरण करना चाहिए। उन्होंने कहा कि श्रीकृष्ण का चरित्र मानव मात्र अनुसरण कर सकता है लेकिन उसका अनुकरण नहीं हो सकता। श्री कृष्ण का अवतार द्वापर युग के अंत में हुआ था। साढे पांच हजार वर्ष पूर्व श्रीकृष्ण ने धरती पर अवतार लिया था। श्रीकृष्ण जन्म से ही भगवान थे। श्रीकृष्ण श्रीमद्भगवत गीता के उपदेशक थे। श्रीकृष्ण महाभारत के सूत्रधार ही नहीं, शास्त्रों के जनक माने जाते हैं। श्रीकृष्ण के विविध रूपों का वर्णन विभिन्न शास्त्रों में मिलता है। श्रीमद्भगवत गीता आज 125 भाषाओं में उपलब्ध है। सारे शास्त्रों का जन्म ही श्रीमद्भगवत गीता से होता है। श्रीमद्भगवत गीता का उपदेश मानव मात्र के कल्याण के लिए है। श्रीकृष्ण ने एक बार नहीं बल्कि 4 बार गीता का उपदेश दिया था। पहली बार भगवान सूर्य को और चौथी बार अर्जुन को श्रीमद्भगवत गीता का उपदेश दिया। अर्जुन का मतलब होता है सरल। श्रीकृष्ण ने हमेशा सरल व्यक्तित्व को ही श्रीमद्भगवत गीता का उपदेश दिया।
मुख्य अतिथि वक्ता डॉ. कृष्णचंद्र गोस्वामी ने कहा कि श्रीकृष्ण देवता नहीं परम देवता हैं। श्रीकृष्ण ने कर्म को महत्वपूर्ण बताया। श्रीकृष्ण ने कभी कमजोर को नहीं छुआ। उन्होंने युद्ध भी किया तो कामदेव से किया। कंस के साथ उसके पापाचारों का नाश किया। श्रीकृष्ण का पराक्रम एवं शक्ति अद्भुत थी। श्रीकृष्ण हर कला में निपुण थे। उन्होंने श्रीकृष्ण एवं राधा की प्रेम भक्ति एवं शक्ति की विस्तार से व्याख्या की। श्रीकृष्ण कण-कण में हर पल में मौजूद हैं। चाहे वो संगीत हो, शिल्प हो, गीत हो, गायन हो, वादन हो, लोक हो परलोक हो, हर जगह श्रीकृष्ण विद्यमान हैं। 125 साल तक श्रीकृष्ण का जीवन रहा। उनके जीवनकाल से यही प्रेरणा मिलती है कि सत्य ही श्रीकृष्ण है। जहां कृष्ण है वह सत्य है जहां सत्य है वह कृष्णा है।
विशिष्ट अतिथि राजश्री चौधरी ने कहा कि कृष्ण बोलते ही एक मनमोहक छवि हमारे दिलों दिमाग में सामने आ जाती हैं। हम प्रेम से अभिभूत हो जाते हैं। कृष्ण हमेशा और हर स्वरूप में आकर्षक हैं। हर काल में प्रिय हैं। कृष्ण के लौकिक रूप का वर्णन अद्भुत है। उनकी बाललीला उनकी रासलीला और उनके द्वारा दिया गया श्रीमद्भगवत गीता का उपदेश हर काल में सार्थक था है और रहेगा। उन्होंने मीरांबाई, रसखान, सूरदास द्वारा लिखे श्रीकृष्ण के चरित्र की विस्तार से चर्चा की। उन्होंने श्रीकृष्ण को लोकरंजन एवं लोकरक्षक बताते हुए कहा कि हम सभी नानीबाई का मायरा और कृष्ण सुदामा की मित्रता की कथा सुनते हुए बड़े हुए हैं। यह सभी प्रेरणादायी हैं। श्रीकृष्ण ने मानव मात्र को यहीं प्रेरणा दी कि इस संसार में आसक्त बन कर नहीं बल्कि संसार में जीने के लिए हमेशा विरक्ति का भाव रखें।
संगोष्ठी के अध्यक्ष सी. आर. देवासी ने कहा कि इस संपूर्ण ब्रह्मांड में श्रीकृष्ण के समकक्ष ना कोई था ना कोई है ना रहेगा। श्रीकृष्ण का व्यक्तित्व इतना विराट और अद्भुत था कि हम कितने ही शोध करते जाएं हम पूर्ण नहीं हो सकते। श्रीमद्भगवत गीता सभी ग्रंथों का सार है। गीता में समस्त रूपों का समायोजन है। श्रीमद्भगवत गीता के श्लोक ही नहीं उनके एक-एक शब्द पर भी जितना शोध किया जाए वह भी कम है। हर समस्या का समाधान श्रीमद्भगवत गीता में समाहित है।
धन्यवाद ज्ञापित करते हुए नवीन नंदवाना ने संगोष्ठी में आए हुए सभी अतिथियों का आभार व्यक्त किया और कहा कि संगोष्ठी में श्रीकृष्ण चरित्र पर ज्ञानवर्धन हम सभी का हो रहा है वह अद्भुत है। श्री कृष्ण चरित्र के कई अनछुए पहलू जो हमें ज्ञात अज्ञात हैं उन्हें भी सुनने का हम सभी को सौभाग्य प्राप्त हो रहा है।
कार्यक्रम में नीतू परिहार लिखित दो पुस्तकों का अतिथियों द्वारा विमोचन किया गया। इसके बाद अतिथियों को स्मृतिचिन्ह भेंट कर सम्मानित किया। डॉ. नीता त्रिवेदी ने कार्यक्रम का संचालन किया। कार्यक्रम का समापन श्रीकृष्ण स्तुति के साथ हुआ।
कृष्ण की विविध चित्रों की प्रदर्शनी:
इस अवसर पर कृष्ण की विविध चित्रों की प्रदर्शनी सभी के आकर्षण का केंद्र रही। सहायक आचार्य चित्रकला डॉ. शंकर शर्मा ने बताया कि कृष्ण विषय से संबंधित चित्र नाथद्वारा के पिछवाई शैली से प्रभावित हैं। नाथद्वारा शैली में प्रयुक्त अभिप्राय कमल गाय प्रयोग में लिए गए हैं। कृष्ण रुपी भाव को अभिव्यक्ति देने का तकनीकी रूप से प्रयास गया है। यहां कुल 10 चित्रों की प्रदर्शनी लगाई गई है। गुफा में विराजे श्रीकृष्ण एवं राधाजी की प्रेम क्रीड़ा करती हुई चित्र प्रदर्शनी सभी के आकर्षण का केंद्र रही।
इसके पष्चात प्रथम विचार सत्र कृष्ण भक्ति साहित्य का व्यापक परिदृश्य पर अपराह्न 2 से 3.30 बजे तक चला। इस सत्र पर प्रो. श्रद्धा सिंह (बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी, उत्तर प्रदेश), शास्त्री डॉ. कौशलेंद्र दास (विभागाध्यक्ष, दर्शनशास्त्र विभाग, जगद्गुरु रामानंदाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय, जयपुर), डॉ. गजेन्द्र मीणा ( केंद्रीय विश्वविद्यालय गांधीनगर, गुजरात) एवं डॉ. नवीन नंदवाना (सह आचार्य, हिंदी विभाग, मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर) ने अपने विचार रखें। प्रो. श्रद्धा सिंह ने राधे-राधे संबोधन से अपना व्यक्तव्य प्रारंभ किया। सिंह ने संप्रदाय मुक्त कृष्ण कवियों और उनकी रचनाओं को सदन के सम्मुख रखा। शास्त्री डॉ. कौशलेंद्र दास ने कृष्ण के विविध स्वरूपों पर अपना वक्तव्य दिया। डॉ.गजेंद्र मीणा ने अपने वक्तव्य में भीलों में कृष्ण के विविध रूपों का उल्लेख किया। डॉ. नवीन नंदवाना ने अपने वक्तव्य में मीरां के पदों को लोक से संबंधित, लोक में ही गाया और लोक को ही समर्पित किया बताया।
प्रथम तकनीकी सत्र मध्यकालीन साहित्य में कृष्ण अपराह्न 4 से 5.30 बजे तक चला। इस सत्र की अध्यक्षता प्रो. के.के. शर्मा (पूर्व आचार्य, केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा, उत्तर प्रदेश) ने की। डॉ. नवनीत प्रिया शर्मा (सह आचार्य, हिंदी विभाग, राजकीय मीरा कन्या महाविद्यालय, उदयपुर) एवं डॉ. आशीष सिसोदिया (सह आचार्य, हिंदी विभाग, मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर) अपने विचार प्रस्तुत किए। इस सत्र में देश के विविध क्षेत्रों से आए हुए प्रतिभागियों एवं शोधार्थियों ने अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए। प्रथम विचार सत्र का संचालन डॉ. देवेंद्र शर्मा (सहायक आचार्य राज. स्नातकोत्तर महाविद्यालय, फतेहाबाद, उत्तर प्रदेश) ने किया।
प्रथम तकनीकी सत्र का संचालन डॉ. निर्मला राव, (अतिथि, सहायक आचार्य, हिंदी विभाग मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर) ने किया।
संगोष्ठी का समापन आज:
डॉ. नीतू परिहार ने बताया कि संगोष्ठी का समापन समारोह शनिवार को दोपहर 2.30 आयोजित होगा। अध्यक्षता प्रो. नीरज शर्मा, अधिष्ठाता स्नातकोत्तर अध्यक्ष सुविवि करेंगे। मुख्य अतिथि प्रो. बी.एल. चौधरी, पूर्व कुलपति सुविवि, विशिष्ट अतिथि डॉ. दुलाराम सहारण, अध्यक्ष राजस्थान साहित्य अकादमी उदयपुर एवं प्रो. नरेंद्र मिश्र, आचार्य हिंदी विभाग, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विवि, नई दिल्ली होंगे। संचालन डॉ. प्रीति भट्ट, सहा. आचार्य हिंदी विभाग, से.म.वि. राजकीय महाविद्यालय, नाथद्वारा द्वारा किया जाएगा। संगोष्ठी संयोजक डॉ. नीतू परिहार, सह संयोजक डॉ. नवीन नंदवाना, डॉ. आशीष सिसोदिया एवं डॉ. नीता त्रिवेदी हैं।
हिंदी विभाग द्वारा आयोजित राष्ट्रीय सेमिनार के दौरान ही एक चित्रकला प्रदर्शनी का भी आयोजन किया जाएगा जिसमें डॉ शंकर शर्मा असिस्टेंट प्रोफेसर( एस.एम.बी गवर्नमेंट कॉलेज, नाथद्वारा) के 10 चित्र प्रदर्शित किए जाएंगे। यह चित्र मूलतः श्रीकृष्ण की थीम पर आधारित हैं। डॉ. शर्मा के चित्र नाथद्वारा चित्र शैली से प्रभावित है। इन चित्रों में आकारद एवं तकनीकी रूप से नाथद्वारा की पिछवाई कला का स्पष्ट प्रभाव दर्शित होता है।

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