शहरी बाढ़ प्रबंधन और बांध सुरक्षा एक एकीकृत दृष्टिकोण पर एक दिवसीय सेमिनार

उदयपुर : दि इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स इंडिया उदयपुर लोकल सेंटर द्वारा ‘‘शहरी बाढ़ प्रबंधन और बांध सुरक्षा एक एकीकृत दृष्टिकोण पर एक दिवसीय सेमिनार का आयोजन इंजीनियर्स इंडिया उदयपुर लोकल सेंटर के सभागार में हुआ।  प्रारम्भ में संस्था के अध्यक्ष इंजी पुरुषोत्तम पालीवाल ने सभी अतिथियों का स्वागत कर कि बताया शहरीकरण और जलवायु परिवर्तन ने शहरी बाढ़ के जोखिम को बढ़ा दिया है जिससे प्रभावी प्रबंधन महत्वपूर्ण हो गया है। बांध जल प्रबंधन के लिए महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा  है, अगर ठीक से प्रबंधित नहीं किया जाता है तो बाढ़ का जोखिम भी पैदा कर सकता है। शहरी बाढ़ प्रबंधन और बांध सुरक्षा के लिए एक एकीकृत दृष्टिकोण की आवश्यकता है जो शहरी बुनियादी ढांचे, जल प्रबंधन को ध्यान में रखता है। समन्वित और जोखिम-आधारित दृष्टिकोण अपनाकर, हम बाढ़ के जोखिम को कम कर सकते हैं और बांधों की सुरक्षा सुनिश्चित कर सकते हैं, जिससे अंततः जान-माल की रक्षा होगी। 
इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स इंडिया उदयपुर लोकल सेंटर के मानद सचिव इंजीनियर पीयूष जावेरिया ने बताया कि शहरी बाढ़ दुनिया भर में एक महत्वपूर्ण चिंता का विषय बन गई है। तेजी से बढ़ते शहरीकरण, अपर्याप्त बुनियादी ढांचों के कारण बाढ़ वैश्विक स्तर पर शहरों के लिए गंभीर चुनौतियां पेश करती है जिससे लाखों शहरी निवासियों के जीवन और आजीविका प्रभावित होती है। इसलिए इस विषय पर चिंतन करने मनन करने और समाधान निकालने के लिए इस विषय पर सेमिनार आयोजित किया जा रहा है। 
मुख्य अतिथि एवं मुख्य वक्ता  डॉ एस एम प्रसन्ना कुमार,  निदेशक, गीतांजलि इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्निकल स्टडीज, उदयपुर ने बताया कि शहरी बाढ़  अपर्याप्त जल निकासी व्यवस्था,प्राकृतिक जल मार्ग पर अतिक्रमण,जलवायु परिवर्तन और मौसम की घटनाएं और  खराब शहरी नियोजन के कारण होती है और  शहरी क्षेत्रों में बाढ़ के सबसे आम कारण तीव्र या लंबे समय तक भारी वर्षा ,वर्षा जल निकासी प्रणालियों को प्रभावित कर सकती है, जिससे सतही अपवाह और बाढ़ आ सकती है, तटीय शहर विशेष रूप से तूफान या उष्णकटिबंधीय तूफानों के कारण होने वाली तूफ़ानी लहरों के प्रति संवेदनशील होते हैं, जो समुद्री जल को अंतर्देशीय क्षेत्र में धकेल सकते हैं। अपर्याप्त या खराब तरीके से बनाए गए जल निकासी बुनियादी ढांचे के कारण भारी बारिश के दौरान बाढ़ आ सकती है। इसमें अवरुद्ध नालियाँ अपर्याप्त क्षमता या पुरानी प्रणालियाँ शामिल हैं। शहरीकरण के कारण अभेद्य सतहों ;जैसे सड़कें और इमारतें में वृद्धि से भूमि की पानी को अवशोषित करने की प्राकृतिक क्षमता कम हो जाती है जिससे अधिक अपवाह और बाढ़ आती है, नदियों में ऊपर की ओर अत्यधिक वर्षा,पिघलती बर्फ या बर्फ के जाम के कारण अपने किनारों को ओवरफ्लो कर सकती हैं, जिससे आस.पास के शहरी क्षेत्र प्रभावित होते हैं। वनों की कटाई या आर्द्रभूमि को शहरी क्षेत्रों में बदलने जैसे भूमि उपयोग में परिवर्तन प्राकृतिक जल प्रवाह को बाधित कर सकते हैं और बाढ़ के जोखिम को बढ़ा सकते हैं।
विशिष्ट अतिथि  इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स के राजस्थान से चुने गये  काउंसिल मेंबर इंजी. एस एस यादव ने संस्था की गतिविधियों एवं मुख्यालय द्वारा भविष्य में किये जाने वाले कार्यकलापों के बारे में बताया। उन्होंने उपस्थित सभी सदस्यों से मेम्बरशीप बढाने का आवाहन किया और आगामी काउंसिल मेंबर इलेक्शन में राजस्थान से अधिक से अधिक सदस्यों का नामांकन भरने के लिए प्रोत्साहित किया। 
अतिथि वक्ता एवं इंजी महेंद्र कुमार चौहान अध्यक्ष राजस्थान स्टेट सेंटर, द इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स इंडिया जयपुर ने इंस्टीट्यूशन आफ इंजीनियर्स द्वारा किये जाने वाले कार्यकलापों के बारे मे बताया और बताया कि पिछले 20-30 सालों में बारिश का पैटर्न बदल गया है जैसे बादल फटना इत्यादि हालांकि जिस पर नियंत्रण नहीं किया जा सकता हैं फिर  भी इंजीनियर यदि ईमानदारी से काम करें तो कुछ भी कर सकते हैं । उन्होंने बताया कि सिविल इंजीनियरिंग सबसे पुरानी इंजीनियरिंग है । शहरी बाढ़ एक बढ़ती हुई समस्या है तीव्र शहरीकरण जलवायु परिवर्तन के प्रभावों जैसे कि तीव्र वर्षा की घटनाओं के साथ मिलकर, हमारी जल निकासी प्रणालियों को प्रभावित करता है , जिससे महत्वपूर्ण व्यवधान , आर्थिक नुकसान और यहां तक कि जीवन के लिए खतरा पैदा होता है। बांध  जल भंडारण , सिंचाई के लिए आवश्यक है। बांध की विफलता के संभावित परिणाम विशेष रूप से एक शहरीकृत डाउनस्ट्रीम क्षेत्र में विनाशकारी होते हैं जो बाढ़ की आपदाओं को अकल्पनीय पैमाने पर बढ़ा देते हैं।शहरी बाढ़ से निपटने के लिए समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है। एकीकृत शहरी बाढ़ प्रबंधन, बाढ़ के जोखिम को कम करने के लिए हरित बुनियादी ढांचे का विकास, मजबूत भूमि.उपयोग योजना और व्यापक बाढ़ जोखिम आकलन शामिल हैं। बाढ़ से होने वाले नुकसान से को कम करने के लिए मजबूत शासन और नीतिगत निर्णय की आवश्यकता है।  
सेमिनार के अतिथि वक्ता इंजी राजकुमार सिंह चौहान पूर्व अतिरिक्त मुख्य अभियंता, लोक निर्माण विभाग, उदयपुर ने बताया कि ने बताया कि जलवायु परिवर्तन, तेजी से बढ़ते शहरीकरण और पुरानी जल निकासी प्रणालियों के कारण शहरी बाढ़ की घटनाएं बढ़ रही हैं। हम बहुस्तरीय योजना को दर्शाने के लिए शतरंज के उदाहरण के माध्यम से शमन रणनीतियों का पता लगाते हैं। उन्होंने बताया कि पिछले 10 वर्षों में लगभग 80 प्राकृतिक आपदा घटित हुई हैं और 1998 से 2017 के दौरान विश्व भर में 2 अरब लोग प्रभावित हुए  उन्होंने कहा कि इस बाढ़ आपदा के लिए मनुष्य भी जिम्मेदार है क्योंकि हम प्राकृतिक जल के प्रवाह पर इमारतें बना रहे हैं। कई जगहों पर 2 घंटे की बारिश  से बाढ़ की स्थिति बन जाती हैं। प्रशासन को  हमेशा वर्षा ऋतु में नीचे स्थान पर ध्यान  देना चाहिए। उन्होंने भारी बारिश बर्फ पिघलने भूस्खलन सुनामी बांध टूटने जैसी बाढ़ के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने बताया कि बाढ़ के साथ बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में बिजली और स्वच्छ पानी की आपूर्ति बाधित है। उन्होंने बाढ़ को मापने के लिए 3 फैक्टर के बारे में बताया यथा पानी की गहराई, एक निश्चित अवधि में किसी क्षेत्र से गुजरने वाले पानी की मात्रा और जलमग्न क्षेत्र।
अतिथि वक्ता इंजी इंजीनियर वी एस सागर, अतिरिक्त मुख्य अभियंता, जल संसाधन विभाग, उदयपुर ने स्टोरेज डेम (बाध) के परिभाषित करते हुए बताया कि  भंडारण बांध नदी में अतिरिक्त आपूर्ति की अवधि के दौरान इसके ऊपरी हिस्से में पानी को रोकने के लिए बनाया जाता है और कम आपूर्ति की अवधि में इसका उपयोग किया जाता है। भंडारण बांधों का निर्माण विभिन्न उद्देश्यों जैसे सिंचाई, जल आपूर्त, बिजली उत्पादन के लिए किया जा सकता है। एक भंडारन बांध का निर्माण पत्थर कंक्रीट मिट्टी रॉक फिल आदि जैसी विभिन्न प्रकार की सामग्रियों से किया जा सकता है जबकि अवरोध बांध बाढ़ के दौरान पानी को संग्रहित करने और बाढ़ के कम होने पर इसे धीरे.धीरे सुरक्षित दर पर छोड़ने के लिए अवरोध बांध का निर्माण किया जाता है। बाढ़ के दौरान कृत्रिम भंडारण के प्रावधान से बाढ़ से होने वाले नुकसान को कम किया जाता है। आमतौर पर दो प्रकार के अवरोध बांध होते हैं। पहले प्रकार में पानी को अस्थायी रूप से संग्रहीत किया जाता है और एक उपयुक्त आउटलेट संरचना के माध्यम से छोड़ा जाता है। दूसरे प्रकार के अवरोध बांध में, पानी नहीं छोड़ा जाता है और कोई आउटलेट संरचना प्रदान नहीं की जाती है। इसके बजाय, जलाशय में जितना संभव हो सके पानी को रोक कर रखा जाता है। यह रुका हुआ पानी पिछले किनारों और नींव की परतों में रिसता है। इस रिसाव वाले पानी के कारण आस.पास के क्षेत्र में कुओं में जल स्तर बढ़ जाता है और लिफ्ट सिंचाई संभव हो सकती है। उन्होंने अपने सेवाकाल में विभिन्न जिलों में बाढ़ से संबंधित संस्मरण सुनाए। 
अतिथि वक्ता इंजी ऋषभ जैन, अधीक्षण अभियंता,गुणवत्ता नियंत्रण, जल संसाधन विभाग, उदयपुर ने बताया कि वाटर रिसोर्सेज डिपार्टमेंट के लिए बाढ़ प्रबंधन की तैयारियों में बांधों जल निकायों का दौरा करती है तथा बांधों,जल निकायों का दौरा करते हैं,  और गेट रखरखाव, स्लुइस गेटों,वेस्ट वियर गेटों का सुचारू संचालन सुनिश्चित करते है।मानसून के आगमन से पहले जरूरी रखरखाव किया जाता है यथा गेटों की ऑयलिंग ग्रीसीग की जाती हैं। बाढ़ से संबंधित संवेदनशील बिंदुओं की पहचान करना तथा संवेदनशील बिंदुओं एवं कार्य योजना को शामिल करते हुए मानचित्र तैयार करना। प्रमुख बांधों से संबंधित महत्वपूर्ण मुद्दों की पहचान और उपचारात्मक उपाय साथ ही सीडब्ल्यूसी के साथ संचार प्रोटोकॉल पर विस्तृत चर्चा की जाती है। सभी जल निकायों का मानसून पूर्व निरीक्षण संबंधित अधिकारी द्वारा किया जाता है। 5 जून से बाढ़ प्रकोष्ठ का गठन कर दिया जाए तथा चौबीसों घंटे संचालन किया जाता है। फील्ड अधिकारियों को स्थानीय प्रशासन के साथ मिलकर मॉक ड्रिल करते हैं तथा नावों, पंपों की संख्या का आवश्यकतानुसार विश्लेषण किया जाता है।उन्होंने बाढ़ मिटिगेशन को समझाते हुए बताया कि इसमें बाढ़ के प्रभाव को कम करने की रणनीतियाँ शामिल की जाती है यथा बाढ़ नियंत्रण, अवसंरचना, बाढ़ के पानी से बचाव के लिए तटबंध, प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली, लोगों को तैयार होने और खाली करने में मदद करने के लिए वास्तविक समय की निगरानी और अलर्ट इत्यादि घटक पर फोकस किया जाता है। उन्होंने बताया कि डेस सेफ्टी एक्ट 2021 के बारे में बताया कि जिसमें बांध सुरक्षा मानकों के संबंध में नीतियां विकसित करना और आवश्यक विनियमनों की सिफारिश करना। संचालन एवं धन्यवाद ज्ञापन दि इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स इंडिया,उदयपुर लोकल सेंटर के मानद सचिव इंजी पीयूष जावेरिया ने किया।

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