उदयपुर। राजस्थान बाल अधिकार संरक्षण साझा अभियान, बाल सुरक्षा नेटवर्क एवं जन स्वास्थ्य अभियान राजस्थान के संयुक्त तत्वाधान में 11-12 सितम्बर को आस्था प्रशिक्षण केन्द्र, बेदला में ‘लोकतंत्र में बच्चों, किशोर-किशोरियों की भागीदारी’ विषय पर दो दिवसीय संभाग स्तरीय कार्यशाला आयोजित की गई। कार्यशाला का उद्देश्य राज्य में 2023 में होने वाले आगामी विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए राजनीतिक दलों द्वारा जारी होने वाले चुनावी घोषणापत्र में बच्चों के मुद्दों को शामिल कराने के लिए बच्चों द्वारा बच्चों का सामूहिक मांग पत्र विजन-2023 तैयार किया गया।
राजस्थान बाल अधिकार संरक्षण साझा अभियान के बेनर तले दशम-2023 के कार्यक्रम समन्वयक मांगीलाल शेखर ने बताया कि कार्यशाला में उदयपुर, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़, चित्तौडग़ढ, डूंगरपुर जिलों के 150 से अधिक बच्चे, जिसमें 10 मानसिक विमंदित, डीप एण्ड डंप श्रेणी के बच्चों सहित 30 स्थानीय स्वयंसेवी संस्थाओं, समुदाय आधारित संगठन के सदस्यों ने भाग लिया। कार्यशाला में बच्चों द्वारा बच्चों के जीवन को प्रभावित करने वाली स्थानीय समस्याओं को चिन्हित किया गया और उनके समाधान के लिए बच्चों द्वारा मांग-पत्र विजन-2023 तैयार किया गया। संभाग के राजनैतिक जनप्रतिनिधियों एवं मीडिया प्रतिनिधियों के सामने जो मांग पत्र प्रस्तुत किया गया वह निम्न है-
- सरकार उच्च माध्यमिक विद्यालय स्तर पर आवासीय सुविधाएं प्रदान की जाये।
- ग्राम पंचायतस्तरीय उच्च माध्यमिक विद्यालयों में सभी विषयों के संकाय एवं खेल के मैदान होने चाहिए तथा अध्यपकों की पर्याप्त उपलब्धता होनी चाहिए।
- विद्यालयों में दृश्य-शव्य बाधित बच्चों के लिए सांकेतिक भाषा के जानकार अध्यापक अनिवाय रूप से होने चाहिए।
- अस्पताल, पुलिस थाना, न्यायालय, रेलवे स्टेषन, बस स्टेण्ड एवं अन्य सार्वजनिक स्थलों पर सायन भाषा विशेषज्ञों की स्थाई नियुक्ति होनी चाहिए।
- एच.आई बच्चों के लिए राजकीय सेवा में अतिरिक्त आरक्षण सुविधा होनी चाहिए।
- एच.आई बच्चों के लिए प्रत्येक परीक्षा के दौरान परीक्षा केन्द्र पर साईन भाषा का जानकार नही होने के कारण उन्हें कई बार परीक्षा से वंचित होना पढ़ता है, इसलिए यह सुविधा उपलब्ध कराना अति आवश्यक है।
- प्रत्येक विद्यालयों एवं कॉलेजों में मासिक स्तर पर स्वस्थ्य जॉच एवं उपचार की सुविधाएं गुणवत्ता सहित उपलब्ध कराई जाये।
- एक ऐसा ऑनलाइन एप तैयार किया जाये, जिसे आपातकालीन परिस्थियों में क्लिक करते ही इन्टरप्रटेटर के माध्यम से सहायता मिल सके।
- बच्चों की सुरक्षा एंव शिकायत के लिए ऑनलाइन एप बनाया जाये जिसको कलक्टर, पुलिस अधीक्षक, अध्यक्ष-बाल कल्याण समिति एवं जिला शिक्षा अधिकारी की निगरानी दैनिक हो ताकि तत्काल कार्यवाही की जा सके।
- विद्यालयों एवं कॉलेजो में बच्चों की सहायता हेतु परामर्शदाता अथवा सामाजिक कार्यकर्ता की नियुक्ति करे ताकि उन्हें उनकी समस्याओं का वहीं समाधान हो सके।
- विद्यालय में वितरित होने वाले सेनेटरी नेपकिन की उपलब्धता सुनिश्चित करने के साथ उनकी गुणवक्ता में उचित बदलाव होना चाहिए।
- विद्यालय एवं सार्वजनिक स्थलों पर सेनेटरी नेपकिन निष्पादन मशीन अनिवार्य रूप से होनी चाहिए।
- विद्यालयों में यौन एवं प्रजनन शिक्षा से संबंधित सभी पाठों का अध्ययन अनिवार्य रूप से प्रशिक्षित कराया जाये, ना कि संकोचवश छोड़ा जाये।
- जीवन कौशल शिक्षा का अध्ययन नियमित विषय के रूप में होना चाहिए।
- ग्राम पंचायत स्तर पर बाल विवाह, बालश्रम जैसे कानूनो की पालना शक्ति से की जाये।
- परिवहन साधना/संसाधनों में सीसीटीवी केमरे एवं महिला कार्मिकों की व्यवस्था होनी चाहिए।
- विद्यालयों के बाहर व अन्दर सीसीटीवी केमरे लगने चाहिए, ताकि शिक्षा की गुणवत्ता के साथ सुरक्षा के पुख्ता इन्तजाम हो सके।
- विद्यालयों के रास्ते में शराब की दुकान एवं गुटखा/सिगरेट आदि की दुकानों तत्काल प्रभाव से हटाया जाना चाहिए।
- प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर बच्चों एवं वृद्धों के लिए सभी प्रकार की बीमारियों हेतु निशुल्क जॉच एवं उपचार की व्यवस्था होना चाहिए।
- कक्षा 9 से 12 तक बच्चों के लिए कैरियर मार्गदर्शक हो और साप्ताहिक पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाना चाहिए।
- नो बेग डे को नियमानुसार संचालित किया जाये और लागू किया जाये। इस दिन बच्चों को सामाजिक विकास, नैतिक शिक्षा, यौन शिक्षा, असुरक्षित स्पर्श जैसे विषयों का ही अध्ययन कराया जाये।
- घुमंन्तु समुदाय के बच्चों की शिक्षा की सुनिश्चिता तथा दस्तावेज नहीं होने के कारण उनके जाति प्रमाण पत्र, मूल निवास, राशनकार्ड, जन-आधार कार्य नहीं बनने के कारण विकास के अवसरों से वचित ही रहते है, इसलिए उनकी मंाग है कि उनके लिए स्थाई पट्टे एवं मकान होना बहुत आवश्यक है।
- सरकार नये विद्यालय न खोलते हुए वर्तमान में संचालित विद्यालयों में शिक्षा की गुणवत्ता, पर्याप्त शिक्षक, प्रत्येक विषय के शिक्षक, खेल के मैदान, खेल सामग्री, सक्रिय शौचालय, पुस्तकालय, कक्षा-कक्ष में सीसीटीवी केमरे लगाये। शिक्षक बच्चों को पढ़ाएं नाकि मोबाईल पर समय बितायें।
- पाठ्यक्रम में मानव अधिकार एवं बाल अधिकारों को अनिवार्य हिस्सा बनाया जाये।
- आदिवासी अंचल में अन्य राज्यों की बोर्डर से सटे गॉवों से बाल श्रम एवं दुव्र्यापार को रोकने हेतु मानव तस्तकरी विरोधी यूनिट की उप शाखा की स्थापना की जाये।
- पुलिस थानों में नियुक्त होने वाले बाल कल्याण पुलिस अधिकारी के लिए अलग से कैडर बनाया जाये।
- दृष्टिहीन, मूक बधिर विशेष बच्चों के लिए श्रति लेखक एवं उच्च षिक्षा के लिए राज्य में एक भी कॉजेल नही है, की विशेष मांग की गई।
कार्यशाला के प्रथम दिन यूनिसेफ राजस्थान की हैड ईजा बेल, बाल संरक्षण विशेषज्ञ संजय निराला, संचार विशेषज्ञ अंकुशसिंह ने बच्चों की समस्याओं व सुझावों को सुना साथ बाल अधिकारों पर चर्चा करते हुए, बच्चों के मांग पत्र को राज्य स्तर पर राजनैतिक पार्टीयों के समक्ष रखने एवं पैरवी करने का समर्थन किया। कार्यशाला में 150 से अधिक बच्चों व संस्था प्रतिनिधियों ने बच्चों के विभिन्न मुद्दों पर अलग-अलग चर्चा की जिसमें बच्चों के मुद्दों पर क्या मॉग व विजन रखते है, जिन्हें राजनैतिक जन प्रतिनिधियों के समक्ष प्रस्तुत किया जा सके।
दूसरे दिन समन्वयक उषा चौधरी, बी. के. गुप्ता, डॉ. शैलेन्द्र पाण्डया, राजस्थान बाल अधिकार संरक्षण साझा अभियान के राज्य सयोजक मनीष सिंह, आदि ने राजनितिक दलों के प्रतिनिधियों के सम्मुख दो दिन के कार्यक्रम की जानकारी दी। बच्चों ने कांग्रेस पार्टी के प्रतिनिधि के रूप में उपस्थित प्रो. गोरव बल्लभ, रघुवीर मीणा, मांगीलाल गरासिया, कचरूलाल चौधरी, लक्ष्मीनारायण पण्डया, आम आदमी पार्टी से प्रकाष भारती भारतीय जनता पार्टी के चन्द्रगुप्त चौहान के समक्ष अपनी मागों को रखा। सभी जनप्रतिनिधियों ने कहा कि बच्चों ने आज जो भी समस्याएं व मॉगें रखी हैं उनको वास्तविकता में महसूस किया है। वे अपनी-अपनी पार्टी के चुनाव घोषणा पत्र में बच्चों के अधिक से अधिक मुद्दों को शामिल कराने का प्रयास करेंगे ताकि जो भी पार्टी सत्ता में आयेगी वे इसकी पालना करने के लिए प्रतिबद्व हो सके।