उदयपुर। मेवाड़ के 68वें एकलिंग दीवान महाराणा जवानसिंह की 224वीं जयंती महाराणा मेवाड़ चैरिटेबल फाउण्डेशन, उदयपुर की ओर से मनाई गई। सिटी पेलेस म्यूजियम स्थित राय आंगन में मंत्रोच्चारण के साथ उनके चित्र पर माल्यार्पण व पूजा-अर्चना कर दीप प्रज्वलित किया गया।
महाराणा मेवाड़ चैरिटेबल फाउण्डेशन, उदयपुर के मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ. मयंक गुप्ता ने बताया कि महाराणा जवानसिंह का जन्म मार्गशीर्ष सुदी द्वितीया, विक्रम संवत 1857 ( ई.सं. 1800) को हुआ था। उनकी गद्दीनशीनी (ई.सं. 1828 ता. 31 मार्च) को हुई। उनकी माता का नाम गुलाब कुंवर था।
महाराणा जवानसिंह कविता और धर्म के अच्छे जानकार थे। कला और साहित्य में रुचि की कारण आर्थिक संघर्ष के समय में भी उनका काल साहित्यिक विकास का समय रहा। महाराणा ने कई पवित्र स्थानों और गुरुकुलों की तीर्थयात्रा की। जब वे यात्रा से मेवाड़ लौटे तो उन्होंने स्वदेशी शिक्षा प्रणाली में सुधार करने में बहुत रूचि ली। उन्होंने ‘ब्रजराज’ उपनाम का उपयोग करके कविता लिखी। उनकी कविताएँ श्रीकृष्ण की प्रशंसा पर आधारित थी और आमतौर पर ब्रजभाषा में लिखी जाती थी। महाराणा ने कला और साहित्य को समृद्ध बनाने में उनका काफी योगदान रहा।
महाराणा जवानसिंह ने राजमहल में निर्माण कार्य करवाये और उदयपुर में श्री जवान-स्वरूपेश्वर महादेव मन्दिर, श्री जवान-सूरजबिहारी मन्दिर और श्री महाकाली मन्दिर शामिल है। श्री जवान-स्वरूपेश्वर महादेव मन्दिर में महाराणा जवानसिंह और उनकी रानी बघेली की संगमरमर की मूर्ति स्थित है।
महाराणा के शासनकाल में नेपाल के राजा, महाराजा राजेन्द्र विक्रम शाह ने अपने दूत को मेवाड़ की परम्पराओं का अध्ययन करने के लिए उदयपुर भेजा, क्योंकि नेपाल के राणा मेवाड़ के सिसोदिया वंश के वंशज माने जाते हैं। महाराणा जवानसिंह का निधन 30 अगस्त 1838 ई. को हुआ।