उदयपुर : मेवाड़ के 55वें एकलिंग दीवान महाराणा अमरसिंह प्रथम की 465वीं जयंती महाराणा मेवाड़ चैरिटेबल फाउण्डेशन, उदयपुर की ओर से मनाई गई। सिटी पेलेस म्यूजियम स्थित राय आंगन में मंत्रोच्चारण के साथ उनके चित्र पर माल्यार्पण व पूजा-अर्चना कर दीप प्रज्जवलित किया गया।
महाराणा मेवाड़ चैरिटेबल फाउण्डेशन, उदयपुर के मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ. मयंक गुप्ता ने बताया कि महाराणा अमरसिंह प्रथम का जन्म चैत्र शुक्ल सप्तमी, विक्रम संवत 1616 (वर्ष 1559 ई.) को हुआ था। उनका राज्याभिषेक वि.सं. 1653 माघ शुक्ल एकादशी (वर्ष 1597) को चावण्ड में हुआ। महाराणा बाल्यावस्था से ही अपने पिता महाराणा प्रताप के साथ रहकर मेवाड़ की पहाड़ियों, घाटियों एवं पहाड़ी मार्गों से खूब परिचत हो गये थे, इसी कारण उन्होंने महाराणा प्रताप के साथ मुगलों से अनेक पहाड़ी लड़ाइयां लड़ी। शहजादा सलीम ने महाराणा अमरसिंह के समय मेवाड़ पर दो बार चढ़ाई की परन्तु उसे कोई सफलता नहीं मिली। महाराणा अमरसिंह प्रथम महाराणा प्रताप की तरह स्वतंत्रता की रक्षा के लिये मुगलों से लड़ते रहे और मुगल अधीनता कभी स्वीकार नहीं की।
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देश के कई ख्यातनाम इतिहासकारों ने महाराणा अमरसिंह को मेवाड़ कुल और महाराणा प्रताप का सुयोग्य वंशधर बताया। महाराणा बलिष्ठ, पराक्रमी और अपने सरदारों व प्रजा में बहुत ही न्याय प्रिय थे। उनका व्यक्तित्व सभी के साथ मिलनसार था।
मेवाड़ मुगल संधि के बाद अमरसिंह ने प्रशासन में सुधार के लिए योजनागत तरीकों से कई कार्य किये और प्रजा के पुनर्वास की ओर अपना ध्यान दिया। मेवाड़ में लगातार संघर्ष के कारण कई लोगों ने मेवाड़ छोड़ दिया था, उन्हें महाराणा ने मेवाड़ में पुनः आमन्त्रित किया। संघर्षरत रहते हुए भी महाराणा ने मेवाड़ में कला और वास्तुकला को संरक्षण दिया। उन्होंने उदयपुर के राजमहल में अमर महल का निर्माण करवाया था, यही नहीं उन्होंने प्रसिद्ध रागमाला लघु चित्रकला शृंखला का चित्रण भी करवाया।