गुजरात के राज्यपाल महामहिम आचार्य देवव्रत ने 3 नव-निर्मित खंडों का किया लोकार्पण
उदयपुर। आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती की 200वीं जयंती वर्ष के उपलक्ष्य में गुजरात के राज्यपाल महामहिम आचार्य देवव्रत ने नवलखा महल परिसर मंल तीन नव-निर्मित खंडों का लोकार्पण किया। इस अवसर पर जेबीएम ग्रुप के चेयरमैन एस के आर्य, श्रीमद दयानंद सत्यार्थ प्रकाश ट्रस्ट के अध्यक्ष अशोक आर्य उपस्थित थे।
राज्यपाल महामहिम आचार्य देवव्रत ने कहा कि मेरे लिए यह अत्यन्त सौभाग्य का विषय है कि महर्षि दयानन्द सरस्वती की पुण्य तपस्थली नवलखा महल में श्रीमद् दयानन्द सत्यार्थ प्रकाश न्यास द्वारा नवनिर्मित नवलखा महल सांस्कृतिक केन्द्र जनता को समर्पण के लिए तैयार किए नए प्रकल्प आर्यावर्त चित्रदीर्घा, मिनी थियेटर, वैदिक संस्कार वीथिका के लोकार्पण समरोह में आने का अवसर प्राप्त हुआ। सर्वविदित है कि नवलखा महल वह पवित्र कर्मस्थली है जहां महर्षि दयानन्द सरस्वती मेवाड़ के तत्कालीन महाराणा सज्जनसिंह के आमंत्रण पर आये और यहां लगभग साढ़े छह माह विराजकर सत्यार्थ प्रकाश का प्रणयन सम्पूर्ण किया था। महर्षि दयानन्द ने वैदिक संस्कृति के पुनर्जागरण के लिए क्रान्तिकारी प्रयास किए। उनके क्रान्तिकारी प्रयासों ने तत्कालीन कुरीतियों यथा बाल विवाह, सती प्रथा, बालिका शिक्षा, विधवा विवाह, छूआछूत उन्मूलन इत्यादि सामाजिक कुरीतियों के निवारण को नई दिशा मिली। महर्षि दयानन्द के क्रान्तिकारी प्रयासों के अग्र प्रसारण में श्रीमद् दयानन्द सत्यार्थ प्रकाश न्यास सतत् कार्यरत है। नवलखा महल 1993 में आर्य समाज को प्राप्त हुआ उससे पूर्व यहां राजस्थान सरकार के आबकारी विभाग का शराब का गोदाम था तथा जीर्णशीर्ण अवस्था में था। सार्वदेशिक सभा व राजस्थान आर्य प्रतिनिधि सभा के प्रयासों से विश्वभर के आर्यां की भावना का सम्मान करते हुए राजस्थान सरकार ने 1993 में यह भवन आर्य समाज को सौंपा। इस जीर्ण-शीर्ण भवन को सुन्दर बनाने/पुनरुद्धार के लिए न्यास के संस्थापक व आजीवन अध्यक्ष स्वामी तत्त्वबोध सरस्वती ने उस समय एक करोड़ रु. दान की आहुति दी। इसके लिए इतिहास में उनका नाम अमर हो गया है। यहां भव्य यज्ञशाला का निर्माण किया गया। आर्य जगत् के भामाशाह महाशय धर्मपाल एमडीएच मसाले वालों ने अपनी दान सरिता से माता लीलावन्ती वैदिक संस्कृति सभागार का निर्माण करवाया, इसके लिए मैं उनका हृदय से आभार प्रकट करता हूं।
एस के आर्य ने कहा कि नवलखा भवन वास्तुशिल्प की दृष्टि से भव्य स्थल है और यहां अब विश्व में पहली बार वैदिक उद्धरणों/परिच्छेदों को दृश्य रूप में प्रदर्शित किया गया है, ताकि आम जनता के लिए वेदों में निहित संदेशों एवं शिक्षाओं को समझना आसान हो। यहां भगवान राम और कृष्ण के जीवन तथा साधुओं एवं संतों की जीवन-गाथाओं को भी भव्य तैल-चित्रों में प्रदर्शित किया गया है।
अशोक आर्य ने 365 स्वतंत्रता सेनानियों के जीवन को प्रदर्शित करने वाली दीर्घा के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि ये सभी सेनानी भारत के अलग-अलग भागों से थे। कोई महाराष्ट्र से तो कोई बंगाल, ओडिशा, असम और पंजाब से था। हमने इन अनाम सेनानियों के जीवन और देश के स्वतंत्रता-संग्राम में उनके निरूस्वार्थ योगदान को यहां प्रदर्शित किया है।
उन्होंने बताया कि श्रीमद दयानंद सत्यार्थ प्रकाश ट्रस्ट ने 150 वर्ष पुराने नवलखा महल को एक संग्रहालय एवं प्रेरक केंद्र में बदलने में अग्रणी भूमिका निभायी। इसके जीर्णाद्वार कार्य के दौरान, कुछ नई परियोजनाओं जैसे कि एक मिनी थियेटर, एक सांस्कृतिक दीर्घा और एक प्रेरक स्थल का भी निर्माण किया गया। सभी बाहरी दीवारों पर आकर्षक चित्रों को उकेरा गया है जो आज हर देखने वाले को सुखद अनुभव प्रदान करते हैं। साथ ही, महर्षि अग्नि, वायु, आदित्य एवं अंगिरा ऋषि की आदमकद प्रतिमाओं को भी नवलखा महल परिसर में लगाया गया है।
उल्लेखनीय है कि गुलाबबाग स्थित नवलखा महल को 1992 में राजस्थान सरकार ने एक स्मारक के निर्माण के लिए आर्य समाज को सौंपा था। यही वह स्थान है जहां महर्षि दयानंद सरस्वती ने अपने जीवन के छह महत्वपूर्ण माह बिताए थे और ‘सत्यार्थ प्रकाश’ ग्रंथ का लेखन-कार्य किया था। नवलखा महल में आयोजित लोकार्पण समारोह से पूर्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महर्षि दयानंद सरस्वती की 200वीं जयंती वर्ष तथा आर्य समाज के 150वें स्थापना वर्ष के अवसर पर आयोजित किए जा रहे कार्यक्रमों का भी शुभारंभ किया था। ये समारोह 10 अप्रैल, 2025 तक जारी रहेंगे।