राजस्थानी के सुकवि माधव दरक नहीं रहे

उदयपुर। राजस्थानी मायड़ भाषा के सर्व चर्चित सुकवि माधव दरक का अपने पैतृक स्थान कुंभलगढ़-केलवा में निधन हो गया। वे लगभग 90 वर्ष के थे। संप्रति संस्थान द्वारा आयोजित शोकसभा में विभिन्न साहित्यकारों ने उनके निधन को जनभाषा मेवाड़ी की काव्यशक्ति की अपूरणीय क्षति बताते उन्हें शालीनता, सहजता और सरलता का सर्वाधिक लोकप्रिय जनकवि बताया।
कवि अजातशत्रु ने कहा कि माधवजी उनके पहले काव्यगुरु थे जिन्होंने पहली बार मंच देकर मंचीय कवि के रूप में स्थापित किया। उनकी ‘मायड़ थारो वो पूत कठै’ कविता हर चौथे मेवाड़ी के मोबाइल की रिंगटोन ही बन गई। वे जहां भी ‘एड़ो म्हारो राजस्थान’ सुनाते, हजारों हाथ हवा में लहराकर उनकी वाहवाही में तालियों की गूंज दिये अथक बने रहते। डॉ. देव कोठारी ने कहा कि तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य तुलसी पर लिखी ‘आप पधारे जहां तुलसी’ कविता सुनाकर उन्होंने पूरे देश में धर्मक्रान्ति का शंखनाद किया। उनकी ‘जैनाचार्य तुलसी’ कविता तो हर समारोह की शीर्ष शोभा ही सिद्ध हुई।
डॉ. महेन्द्र भानावत ने माधवजी के पिछले पचास वर्षीय सम्पर्क की याद ताजा करते बताया कि पहली बार 03 जनवरी 1953 को उन्होंने लेकपेलेस में महाराणा भूपालसिंहजी के दर्शन कर ‘मंगरा रे बीच राण कुंभा, कुंभलगढ़ किलो बंधवायो’ कविता सुनाकर 250 रूपये का पुरस्कार प्राप्त किया। उनकी प्रेरणा से तेरापंथ के अग्रणी श्रावक सवाईलाल पोखरना ने बम्बई तेरापंथ धर्मसंघ द्वारा एक भव्य समारोह आयोजित कर माधवजी का एक लाख ग्यारह हजार एक सौ एक रूपये से बहुमान कराया। उनकी ‘आप पधारे जहां तुलसी’ पुस्तक भी डॉ. भानावत ने अपने ही मंगल मुद्रण में प्रकाशित की।
किशन दाधीच का कहना था कि उनके कण्ठ में मेवाड़ी की मिठास का यह प्रभाव रहा कि पूरे देश में वे अन्त तक आमंत्रित किये जाने वाले सर्वाधिक लोकप्रिय जन-जन के चहेते रसदार कवि बने रहे। उन्होंने दुख जताया कि कोरोना काल में ही उदयपुर के हरमन चौहान, कृष्णकुमार सौरभ भारती, पुरुषोत्तम छंगाणी जैसे कवि-मित्रों का असह्य बिछोह रहा।
डॉ. तुक्तक भानावत के अनुसार माधवजी जब भी उदयपुर आते, चेटक स्थित कार्यालय में अवश्य आते। उन्होंने बताया कि अरविन्दसिंहजी मेवाड़ ने भी अपने महलों में माधवजी को बुलाकर उनसे ‘एड़ो म्हारो राजस्थान’, ‘शिव दर्शन’ तथा ‘मेवाड़ दर्शन’ कविताएं सुनीं और न केवल उन्हें पचास-पचास हजार से पुरस्कृत किया अपितु उनका प्रकाशन भी करवाया। डॉ. इकबाल सागर के अनुसार प्रतिवर्ष प्रताप जयंती पर प्रताप स्मारक मोती मगरी पर आयोजित कवि सम्मेलन में माधवजी ही मुख्य किरदार के रूप में छाये रहते। पहली बार उन्होंने ही ‘मायड़ थारो वो पूत कठै’ कविता सुनाई थी जो सर्वाधिक सराही गई। इस अवसर पर डॉ. श्री कृष्ण ‘जुगनू’, डॉ. ज्योतिपुंज ने भी संवेदनाएं व्यक्त कीं।

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