उदयपुर। उज्जैन में जनजातीय लोककला एवं बोली विकास अकादमी की ओर से आयोजित विमुक्त एवं घुमंतू जातियों का देवलोक विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन डॉ. महेंद्र भानावत ने किया। डॉ. भानावत ने कहा कि देवलोक प्रत्येक समाज का अपना रक्षा ढांचा होता है। लोक को शास्त्र की आवश्यकता नहीं होती जबकि शास्त्र लोक की बुनियाद पर खड़ा होता है। लोक ने ही देवताओं की धारणा अनेक अर्थों में शास्त्र, सभ्यता और संस्कृति को दिए हैं। उन्होंने दिव्यात्माओं, प्रेतों और मानवीय रूप में आए देवताओं के मेलों तथा देव धारणाओं के पोषक नाट्य, ख्याल, रम्मतों आदि को भी विस्तार से विवेचित किया।
इससे पहले हेडलबर्ग यूनिवर्सिटी से शोध कर रहे अश्विनी शर्मा ने प्रो. विलियम सेक लिखित गोड ऑफ जस्टिस के आधार पर कहा कि यायावर समुदायों में देव पूजन का सम्बंध कहीं न कहीं सामाजिक न्याय से होता है।
प्रारंभ में अकादमी के निदेशक डॉ. धर्मेंद्र पारे ने कहा कि अकादमी विमुक्त और यायावर समुदायों के देवलोक पर शोध अध्ययन करवा रही है और यह गोष्ठी अपनी तरह की अकेली और बड़ी गोष्ठी है। देवलोक का संबंध न्याय, उपचार, नृत्य, शिल्प आदि से रहा है। संगोष्ठी में भारत विद्याविद डॉ. श्रीकृष्ण जुगनू ने भारतीय देव अवधारणा को विवेचित किया और वैदिक, उपावैदिक देवताओं सहित आयुर्वेद, ज्योतिष, वास्तु, अर्थशास्त्र, कृषि आदि के देवताओं के विश्वास बताए। उनका मत था कि प्रत्येक समुदाय और उसके व्यवहार एव व्यवसाय का संबंध देवताओं से रहा है। संचालन शुभम ने किया।