कटारिया कद्दावर नेता

(Dr. Tuktak Bhanawat) : राजस्थान विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता और उदयपुर के विधायक के रूप में अपनी कद्दावर छवि के रहते गुलाबचन्द कटारिया (Gulabchand Kataria) ने बड़ा नाम बनाया है। स्कूली जीवन से ही उनमें नेतापन के पूत के पांव दिखने लग गये थे फिर स्कूल में माड़साब रहते भी उनके चेहरे पर राजनीति का रंग दमकने लग गया था।
अपनी चार दशक की राजनीति में वे चार वर्ष जैनत्व धारण किये रहे। वे प्रारम्भ से ही संघ के अनुशासित सिपाही बने रहे। इसलिए वे अपने जीवन में भी अनुशासित रह राजनीति में भी भाजपा का पाला पकड़ा तो उसी की पाणत करते रहे। अपने फेरे में ही वे अपनी बाड़ी खिंचते रहे। किसी दलबदलू के शिकार नहीं हो अंगद का पांव बनाये रहे।
एक स्पष्ट वक्ता और पारदर्शिता  रखते वे अपनी बातों में बेबाक रहे। यही कारण रहा कि अपनी बयानबाजी से वे विवादों में रहे परन्तु उन्होंने उसे वादविवाद का विषय नहीं बना माफी मांगते साफगोई का परिचय दिया।
अपने राजनैतिक केरियर में भी कटारियाजी साधारण शिक्षक बने रहे। असाधारण और विशिष्ट-अति विशिष्ट होने पर भी उन्होंने आम जनता से अपना सम्पर्क बनाये रखा। जनकल्याणकारी रिश्तों तथा कार्यों पर अधिक ध्यान देकर उन्होंने जो छवि बनाई उसके कारण विरोधियों की जमात भी उनके खिलाफ हो गई। अपने लोग भी उनके मुखर खिलाफ हुए।
यह खुश खबर ही है कि कटारियाजी को असम का राज्यपाल बनाया गया है। इस अवसर पर एक कवि द्वारा लिखी पंक्तियां याद आ रही हैं जिनमें तोता कह रहा है-
सोने के पिंजरे में भी यदि करना पड़ा मुझको वास।
नरक तुल्य मुझको वह होगा बनकर औरों का दास।।
लेकिन यहां तो कटारियाजी के लिए वैसी बात नहीं है। वे सदैव ही कहते रहे कि पार्टी मुझे जो भी जिम्मेदारी देगी, मैं पूरी निष्ठापूर्वक उसका निर्वाह करूंगा।
इस सन्दर्भ में खड़ी बोली के प्रथम महाकाव्य ‘प्रिय प्रवास’ में अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ की लिखी काव्यपंक्ति याद आ रही है- ‘प्यारे जीवैं, जग हित करैं, गेह चाहे न आवैं।’

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