-डॉ. तुक्तक भानावत-
आदिवासी बहुल उदयपुर जिले में महिला शिक्षा की कमी,आर्थिक व सामाजिक पिछड़ापन एवं राजनीतिक जागरूकता की कमी के रहते आजादी के 76 वर्ष गुजरने के बावजूद भी केवल छह महिलायें ही विधानसभा सदस्य बन पाई। इनमें लक्ष्मीकुमारी चूण्डावत (Lakshmi Kumari Chundawat) भीम से कांग्रेस के टिकट पर तीन बार विधायक चुनी गई।
सर्वप्रथम उदयपुर जिले की भीम विधानसभा (सामान्य) सीट से साहित्यकार श्रीमती लक्ष्मीकुमारी चूण्डावत ने कांग्रेस के टिकट पर 1962 में विधानसभा चुनाव लड़ा एवं विजयी रही। उन्होंने अपने प्रतिद्वंद्वी जनसंघ के उम्मीदवार सुन्दरलाल को 12 हजार 955 मतों से हराया। श्रीमती लक्ष्मी कुमारी 1967 के चुनाव में भी कांग्रेस के टिकट पर भीम से विधायक चुनी गई। इस चुनाव में उन्होंने जनसंघ के शंकरलाल को 14 हजार 948 मतों से हराया। श्रीमती चूण्डावत तीसरी बार 1980 में कांग्रेस के टिकट पर ही फिर भीम की विधायक बनी। इस बार उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार रासासिंह रावत को तीन हजार 366 मतों से पराजित किया। उल्लेखनीय है कि श्रीमती चूण्डावत ने कांग्रेस के टिकट पर पहली बार भीम विधानसभा क्षेत्र से 1957 में चुनाव लड़ा था लेकिन भाग्य ने उनका साथ नहीं दिया और वे निर्दलीय उम्मीदवार फतहसिंह से दो हजार 244 मतों से हार गई।
श्रीमती चूण्डावत के बाद उदयपुर शहर विधानसभा (सामान्य) से लेखिका डॉ. गिरिजा व्यास (Dr. Girija Vyas) 1985 में विधानसभा के लिए चुनी गई। जिले का यह संयोग कहा जा सकता है कि दोनों महिलाएं साहित्य से सरोकार रखती हैं। डॉ. व्यास मोहनलाल सुखाडिय़ा विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र की प्रोफेसर थीं। उन्होंने 1985 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार वर्तमान में असम के राज्यपाल गुलाबचंद कटारिया को एक हजार 120 वोटों से हराया। दूसरी बार 1990 में उदयपुर शहर से कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ा लेकिन भाजपा के उम्मीदवार शिवकिशोर सनाढ्य से चुनाव हार गई। उसके बाद डॉ. व्यास ने संसद की तरफ अपना कदम बढ़ाया।
डॉ. गिरिजा व्यास पहली बार 1991 में उदयपुर संसदीय क्षेत्र से सांसद बनी। उन्होंने अपने पुराने प्रतिद्वंद्वी गुलाबचंद कटारिया को 26 हजार 623 मतों से हराया। सन्ï 1996 के लोकसभा चुनाव में वे दूसरी बार उदयपुर से सांसद चुनी गई। इस बार उन्होंने भाजपा के मेवाड़ महामंडलेश्वर मुरलीमनोहरशरण शास्त्री को 40 हजार मतों से हराया। सन्ï 1998 के लोकसभा चुनाव में वे हार गई जबकि 1999 के लोकसभा चुनाव में वे फिर विजयी रही। लोकसभा चुनाव 2004 में वे भाजपा की उम्मीदवार श्रीमती किरण माहेश्वरी से पराजित हुई।
विधानसभा चुनाव 2003 के आते-आते राजनीति में महिलाओं की जागरूकता में मामूली परिवर्तन देखने को मिला। विधानसभा चुनाव 2003 में उदयपुर जिले से छह महिलाओं ने चुनाव लड़ा किन्तु उनमें से मात्र एक विजयी रही। यह महिला श्रीमती वंदना मीणा (Vandana Meena) अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित उदयपुर ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र से चुनी गई। श्रीमती मीणा ने 2003 में भाजपा के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा एवं अपने निकटतक कांग्रेस प्रत्याशी खेमराज कटारा को दो हजार 551 मतों से हराया। श्रीमती वंदना मीणा पहली महिला हैं जो उदयपुर जिले की अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीट से चुनाव लडक़र विधानसभा में पहुंची। उल्लेखनीय है कि विधायक बनने से पूर्व श्रीमती मीणा उदयपुर जिले की जिला प्रमुख भी रह चुकी हैं।
2008 में उदयपुर ग्रामीण सीट से कांग्रेस की सज्जन कटारा (Sajjan Katara) विधायक बनी। कटारा ने भाजपा की वंदना मीणा को 10,696 मतों से हराया। वहीं 2013 और 2018 में एक भी महिला जिले से चुनाव जीतकर विधानसभा का रूख नहीं कर पाई परन्तु 2021 में वल्लभनगर सीट से विधायक गजेन्द्रसिंह शक्तावत की मृत्यु हो जाने पर हुए उपचुनाव में उनकी पत्नी प्रीति शक्तावत (Preeti Shaktawat) ने आरएलपी के उदयलाल डांगी को 20,400 मतों से पराजित किया।
वर्ष 2009 में लोकसभा चुनाव में सलूंबर से विधायक रघुवीर मीणा सांसद चुने गये। उनसे रिक्त हुई विधानसभा की सीट पर कांग्रेस ने उनकी पत्नी बसंतीदेवी मीणा (Basantidevi Meena) को टिकिट दिया। बसंतीदेवी भाजपा के अमृतलाल मीणा को 3098 मतों से हराकर विधानसभा में पहुंची।
इस प्रकार उदयपुर जिले से अब तक मात्र छह महिला विधायक चुनाव जीतकर विधानसभा में पहुंची। आगामी 25 नवंबर 2023 को होने वाले विधानसभा चुनाव में मुख्य पार्टी कांग्रेस ने केवल प्रीति शक्तावत को वल्लभनगर से टिकिट दिया है।