उदयपुर (Udaipur)। सीजर जिसे सामान्य भाषा में मिर्गी अथवा ताण कहा जाता है मस्तिष्क का एक विकार मात्र है। इसमें न्यूरोनल सर्किट्स में असामान्य उत्तेजना होने के कारण प्रभावित मरीजों को मिर्गी का दौरा पड़ता है। इसमें सामान्यतया जीभ का कटना एवं मल मूत्र का स्वत: ही त्याग हो जाता है और ऐसी घटनाएं मरीज को याद भी नहीं रह पाती है। यह बात पारस जे के हॉस्पिटल (Paras JK Hospital) में न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. मनीष कुलश्रेष्ठ (Dr. Manish Kulshrestha) ने कही।
उन्होंने बताया कि मिर्गी कई प्रकार की होती है। कई दौरों के दौरान मरीज की चेतना चली जाती है। मिर्गी के कारण मरीज का जीवन सामाजिक, आर्थिक व मानसिक रुप से प्रभावित होता है। इसीलिए समय रहते इसका उपचार व निदान कराना आवश्यक हो जाता है। मिर्गी का पता लगाने के लिए कुछ सामान्य जांचों के अलावा मस्तिष्क का एमआरआई व ईईजी किया जाता है तथा उसके आधार पर ही मिर्गी के प्रकार का पता लगाया जाता है। उचित उपचार मिलने पर 70 प्रतिषत मामलों में दवाओं द्वारा ही मिर्गी का उपचार किया जा सकता है। कुछ मामलों में ऑपरेशन की जरुरत पड़ सकती है। अगर मिर्गी लगातार चलती रहती है तो मस्तिष्क की कोशिकाओं को भारी क्षति पहुचती है। उपचार समय पर नहीं होने की स्थिति में यह जानलेवा हो सकती है। मिर्गी होने पर घबराना चहीं चाहिए अपितु: न्यूरोलॉजिस्ट को दिखाना चाहिये।
डॉ. मनीष ने मिर्गी के मरीजों के लिए कुछ सामान्य सावधानियां बताई हैं जिससे उपचार में सहायता मिलती है और मिर्गी को नियत्रिंत किया जा सकता है- मिर्गी का मरीज भी सामान्य जीवन जी सकता है। इसमें उसका वैवाहिक जीवन भी शामिल है। सही समय पर डॉक्टर की बताई हुई दवाओं को लेना चाहिये। समय पर अच्छी नींद लेनी चाहिये। संतुलित आहार लेना चाहिये। ऊंचाई व पानी के स्त्रोतों के पास नहीं जाना चाहिए। ड्राईविंग नहीं करना चाहिये अथवा न्यूरोलॉजिस्ट की सलाह पर ही करनी चाहिये। सदैव चिकित्सक के संपर्क में रहना चाहिये। उपरोक्त सावधनियों व समय पर चिकित्सक से परामर्श लेने पर मिर्गी का उपचार किया जा सकता है।
70 प्रतिशत से अधिक मिर्गी के मामलों में दवाओं से ही सफल उपचार : डॉ. मनीष कुलश्रेष्ठ
