उदयपुर। सहारा इंडिया परिवार के मैनेजिंग वर्कर एवं चेयरमैन, सहाराश्री सुब्रत रॉय सहारा ने हर एक भारतीय से अपील करते हुए कहा कि कोरोना के विरूद्ध लड़ाई में अब सरकारी संस्थाओं और स्वास्थ्यसेवी संस्थाओं की भूमिका कम और हमारी और आपकी भूमिका ज्यादा है । सहाराश्री ने कहा कि हमारे सामने बेहद उलझे हुए हालात हैं जब कोरोना महामारी से निपटने के लिए लॉकडाउन का पहला चरण शुरू हुआ था तो हमारे सामने सूत्र वाक्य था कि लॉकडाउन का कड़ाई से पालन करना है और कोरोना को हराना है। उस समय पूरे देश में संक्रमित लोगों की संख्या छह-सात सौ थी। सबको उम्मीद थी कि लॉकडाउन समाप्त होने तक कोरोना पर काबू पा लिया जाएगा। अब जब चार चरण पूरा करने के बाद लॉकडाउन खुल गया है तो इस समय देश में संक्रमित लोगों की संख्या छह लाख के पास पहुंच रही है और हमारे सामने सूत्र वाक्य यह है कि हमें कोरोना के साथ रहना सीखना है यानी हमें कोरोना के साथ ही जीना है।
सहाराश्री ने कहा कि लॉकडाउन के लागू होने और लॉकडाउन के खुलने की दो स्थितियों के बीच इतना कुछ घट गया है कि उसे यहां विस्तार से नहीं बताया जा सकता। जब लॉकडाउन लागू हुआ था तब नेतृत्व करने वाले लोगों, डॉक्टरों, स्वास्थ्यकर्मियों, सफाईकर्मियों, पुलिसकर्मियों और कोरोना से लडऩे वाले सभी लोगों के बीच पूरा उत्साह दिखाई देता था लेकिन अब वह उत्साह जैसे ठंडा पड़ रहा है। इस समय सक्रंमित लोगों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। संक्रमित व्यक्तियों और उनके तीमारदारों की दर्दनाक कहानियां रोज सामने आ रही हैं। अब लॉकडाउन को लेकर जो फैसले लिये गये उनकी भी आलोचना की जा रही है। सबसे ज्यादा सवाल इस बात को लेकर उठ रहे हैं कि जब कोरोना का प्रसार बहुत कम था तब बहुत कड़े नियमों के साथ लॉकडाउन लागू किया गया। अब जब प्रतिदिन कोरोना के लगभग बीस हजार मामले सामने आने लगे हैं तब लॉकडाउन के नियम बिल्कुल ढीले हो गये हैं। यहां तक कि बाजार, मॉल और धार्मिक स्थल भी खोल दिये गये हैं। ये वे स्थान हैं जहां सर्वाधिक लोग जुटते हैं और जहां सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना बहुत कठिन होता है। अगर आर्थिक गतिविधियां शुरू नहीं हुईं तो देश की अर्थव्यवस्था चरमरा जाएगी और करोड़ों लोग बेरोजगारी और भुखमरी के शिकार हो जाएंगे। यह सही भी है कि आर्थिक गतिविधियों को अधिक समय तक रोक कर नहीं रखा जा सकता। तो आज हमारे सामने स्थिति यह है कि कोरोना के तीव्र फैलाव के बीच हमें अपनी आर्थिक और सामाजिक गतिविधियां भी जारी रखनी हैं।
अब हमारे सामने दो स्थितियां बहुत साफ है। पहली यह कि सरकार और स्वास्थ्य सेवाओं की सीमाएं हैं। स्वास्थ्य सेवाएं एक हद तक ही हमारी मदद कर सकती हैं। दूसरी स्थिति यह है कि कोरोना के फैलाव में कोई कमी नहीं आ रही है इसलिए न तो हम असावधान रह सकते हैं, न निश्चिंत रह सकते हैं। दूसरे शब्दों में कहा जाये तो अब हमें स्वयं अपने उन पर ज्यादा निर्भर रहना होगा। हमें कोरोना के विरूद्ध लड़ाई में स्वयं ही योद्धा बनना होगा। पहले से कहीं अधिक सर्तक रहना होगा। लॉकडाउन के दौरान व्यक्तिगत सुरक्षा के जो उपाय हम अपना रहे थे उन्हें हमें पहले से अधिक कड़ाई से अपनाना होगा। आगे जो लड़ाई है उसमें सरकारी संस्थाओं और स्वास्थ्यसेवी संस्थाओं की भूमिका कम है, एक व्यक्ति की यानी हमारी और आपकी भूमिका ज्यादा है। कहने की जरूरत नहीं है कि हमारी यह भूमिका बेहद चुनौतीपूर्ण है। हमें स्वयं को ही नहीं बचाना है बल्कि अपने परिजनों को भी बचाना है और अपने आसपास के लोगों को भी बचाना है।
मैं यहां फिर दोहराना चाहता हूं कि हम सोशल डिस्टेंसिग करें पर इमोशनल डिस्टेंसिंग न करें। हमें भावनात्मक रूप से अपने आसपास के लागों के साथ जुड़ा हुआ रहना चाहिए। टेलीफोन एवं इंटरनेट के जरिए अपनों से लगातार संपर्क बनाए रखना चाहिए। यहां मैं एक बात और कहना चाहता हूं कि हर समाज में कुछ ऐसे गैर-जिम्मेदार लोग होते हैं जो हालात की गंभीरता को नहीं समझते। ये लोग जानबूझकर या अनजाने में बचाव संबंधी उपायों की उपेक्षा करते हैं। ये लोग स्वयं भी संकट में पड़ते हैं और दूसरों को भी संकट में डालते हैं। ऐसे लोगों को रोकना और समझाना भी हमारी जिम्मेदारी है। हमें यह जिम्मेदारी निभानी ही होगी। स्थानीय प्रशासन के साथ सहयोग करना होगा। साथ ही अपने इस संकल्प को लगातार मजबूत करते रहना होगा कि हमें कोरोना को हराना है। हमें कोरोना के साथ रहते हुए ही कोरोना को हराना है।
आज हम यह उम्मीद नहीं कर सकते कि कोरोना से पहले हम जैसा जीवन जी रहे थे वैसा ही जीवन हमें तुरंत मिल जाएगा। हाल फिलहाल इसकी संभावना नहीं है क्योंकि कोरोना के साथ लड़ाई लंबी है और कठिनाइयों का दौर भी लंबा है। इसलिए हमें बिना किसी शिकवे-शिकायत के कठिनाइयों के साथ रहने की आदत डालनी होगी। इसका भी ध्यान रखना होगा कि हमारे भीतर निराशा पैदा न हो। मैं हमेशा कहता हूं कि सकारात्मक भावनाएं मनुष्य को ऊर्जा प्रदान करती हैं। सकारात्मकता एक योद्धा की पहचान होती है इसलिए अपनी सोच को हमेशा सकारात्मक बनाए रखें। और याद रखें कि लॉकडाउन के नियमों को बिल्कुल ढीला कर दिया है क्योंकि संसार की नजर में आप मात्र एक संख्या हैं लेकिन अपने परिवार के लिए आप उसकी पूरी दुनिया हैं। इसलिए अपने लिए, अपने परिवार के लिए एक सच्चे योद्धा की तरह कोरोना को हराने के अपने संकल्प को मजबूत बनाए रखें। हमें विश्वास है कि कोरोना हारेगा और अंतिम जीत हमारी होगी।
कोरोना के विरूद्ध लड़ाई में अब सरकारी संस्थाओं की भूमिका कम और हमारी और आपकी भूमिका ज्यादा है – सहाराश्री
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