राजकोट : पुष्टिमार्गीय प्रधान पीठ प्रभु श्रीनाथजी की हवेली के तिलकायतश्री के सुपुत्र युवाचार्य गो.चि.105 विशालजी (भूपेश कुमार) बावाश्री के कर कमलों से राजकोट के समीप ईश्वरीया गांव में साढ़े बारह एकड़ क्षेत्र में निर्मित वृंदावन धाम में जहां प्रभु श्रीनाथजी का मंदिर, मोती महल, बांके बिहारी मंदिर, प्रेम मंदिर आदि की अद्भुत आकृति से निर्मित ऐसे वृंदावन धाम में श्रीजी स्वरूप श्री ध्वजाजी का आरोहण मंगलवार को विशाल बावा के कर कमलों से किया गया।
इस अवसर पर श्रीनाथजी स्वरूप श्री ध्वजाजी के छप्पन भोग मनोरथ का भी आयोजन किया गया। विशाल बावा ने ध्वजा जी की आरती उतारी। ध्वजाजी के आरोहण के मुख्य मनोरथी उकानी परिवार द्वारा तीन दिनों तक ध्वजाजी के सम्मुख विभिन्न मनोरथ करवाए जाएंगे।
इस अवसर पर श्री ध्वजाजी के महातम्य पर विशाल बावा ने कहा कि अखंड भूमंडलाचार्य जगतगुरु श्रीमद वल्लभाचार्य चरण द्वारा प्रतिपादित एवं “पित्रवंशोदधि विधु:” स्वरूप आपश्री के कुल द्वारा शोभित एवं पल्लवित है पुष्टि मार्ग में ध्वजाजी का अलौकिक माहातम्य अत्यंत गूढ एवं रसात्मक है। श्रीमद् आचार्य चरण आज्ञा करते हैं कि “गोपिका प्रोक्ता गुरुवः” अर्थात गोपियाँ पुष्टि मार्ग में गुरु के समान है एवं अष्ट सखा इसी स्वरूप का वर्णन करते हैं की ‘गोपी प्रेम की ध्वजा’ वस्तुतः पुष्टि मार्ग में श्री कोटी कंदर्प लावण्य स्वरूप श्री गोवर्धनधर ही पुष्टि सृष्टि पर कृपा करने हेतु ध्वजाजी के देदीप्यमान स्वरूप में विराजमान है, श्री ध्वजाजी के रसात्मक स्वरूप का एक भाव यह भी प्राप्त होता है कि आप चतुर्युथ श्री स्वामिनीजी स्वरूप एवं श्री गिरिराजजी स्वरूप से श्रीनाथजी मंदिर शिखर पर विराजमान है, पुष्टीमार्गीय वैष्णवों के आराध्य चौरासी एवं दो सौ बावन वैष्णवों की विभिन्न वार्ताओं में श्री ध्वजाजी को भोग धरकर प्रसाद लेने के प्रसंग प्राप्त होते हैं। एक बार श्री महाप्रभु वल्लभाचार्यजी ने यह विचार किया की कलि में अनेक कष्टों को भोग रहे वैष्णव जन अगर प्रभु के दर्शन करने नहीं आ पाए तो उनके लिए क्या उपाय है, तो ऐसे में श्रीजी प्रभु ने उनको प्रेरणा कर यह कहा कि वैष्णव अगर मेरे द्वार नहीं पहुंच सकते तो मैं स्वयं श्री ध्वजाजी के स्वरूप में उनको दर्शन देने के लिए उनके द्वार ध्वजाजी के रूप में पधारूंगा। यह श्रीजी प्रभु की वैष्णव जन के यहाँ ध्वजाजी के रूप में पधारने की वैष्णव जन पर असीम कृपा है।
अष्ट सखा श्री सूरदासजी को उनके अंतिम समय में वैष्णवों ने पूछा कि आपको श्रीजी प्रभु के दर्शन कैसे हो रहे हैं? तो तत्काल श्री सूरदासजी ने ध्वजाजी की ओर हाथ उठाकर कहा कि वे ही हमारे श्रीनाथजी हैं। आज भी वैष्णव जन श्रीजी के दर्शन के साथ ही ध्वजाजी के दर्शन को साक्षात श्रीजी स्वरूप ही मानते हैं। इसलिये आज भी ध्वजाजी के रूप में श्रीजी प्रभु वैष्णव जन को कृतार्थ करने उनके घर पधारते हैं और यह परंपरा पुष्टिमार्गीय परंपराओं में सबसे अनूठी है।”