उदयपुर : जो व्यक्ति चलते-फिरते प्राणी के घट में बिराजमान ईश्वर को नहीं पहचान सकता, वह मंदिर में विराजमान ईश्वर से आत्मसात का आनंद भी अनुभव नहीं कर सकता। यह बात अंतरराष्ट्रीय कथाव्यास पंडित रूद्रदेव त्रिपाठी ने शुक्रवार को यहां बड़बड़ेश्वर महादेव मंदिर परिसर में चल रही विष्णु पुराण कथा में कही। दिगम्बर खुशाल भारती महाराज के सान्निध्य में चल रहे सनातनी चातुर्मास के अंतर्गत पंच पुराण कथा के क्रम में पहली विष्णु पुराण की कथा के प्रसंगों के साथ कथाव्यास त्रिपाठी ने कहा कि प्राचीन सनातन ग्रंथ प्राणिमात्र में ईश्वर के अंश की उपस्थिति को पहचानने और सर्व हिताय की सीख देते हैं। आपके पास अपार धन-संपदा और सामर्थ्य है, तो इसका सदुपयोग करते हुए निर्बल, निर्धन की सेवा करें। यदि इतना होते हुए भी सेवा नहीं कर सकते, तब सब व्यर्थ है। प्राणिमात्र की सेवा में ही परमात्मा की कृपा निहित है।
कथाव्यास ने ऋषभदेव चरित्र, जड़ भरत चरित्र, और पृथुजी महाराज की कथा को समझाते हुए कहा कि पृथु महाराज ने अपनी प्रजा के लिए बड़े-बड़े पहाड़ों को समतल बनाया। बीज बोकर खेती की। कृषि व्यापार प्रारम्भ करवाया। इससे पहले तक पृथ्वी पर मानव केवल फल, कंद, मूल खाकर जीवन यापन करते थे।
कथा में ‘मानुष जीवन अनमोल है, क्या भरोसा है इस जिंदगी का, बुढ़ापा खोटो छे, तेरे तन में राम’ आदि भजनों पर श्रद्धालु भावविभोर हो गए और कई तो भजनों पर नाच भी उठे। मीडिया संयोजक मनोज जोशी ने बताया कि सनातनी चातुर्मास में नित्य अभिषेक का क्रम भी जारी रहा। पहले दिन से ही नित्य दोपहर तथा संध्या आरती के बाद भंडारा चल रहा है जिसमें साधु, संन्यासी, अभ्यागत व दर्शन को पधारे श्रद्धालु निःशुल्क सात्विक भोजन प्रसाद प्राप्त कर रहे हैं।
हर प्राणी के घट में बिराजमान ईश्वर को पहचानने की सीख देती हैं पुराणों की कथाएं – त्रिपाठी
