प्रख्यात शैली वैज्ञानिक डॉ. कृष्णकुमार शर्मा का निधन

देशभर में सेवाएं दी, उदयपुर में रहते पाई खास पहचान

उदयपुर। प्रख्यात शैली वैज्ञानिक उदयपुर निवासी डॉ. कृष्णकुमार शर्मा का सोमवार तड़के निधन हो गया। वे 90 वर्ष के थे। हिंदी में उनके योगदान को देशभर में जाना जाता रहा है। खास बात ये कि डॉ. कृष्णकुमार शर्मा ने भौतिक शास्त्र में एमएससी करने के बाद हिंदी क्षेत्र में कदम रखा और इसमें दिए योगदान से देशभर में जाने गए। देशभर में सेवाएं देने के बाद डॉ. शर्मा उदयपुर आए और यहीं के होकर रह गए। उन्होंने उदयपुर से ही अपनी खास पहचान बनाई। डॉ. शर्मा के निधन से हिंदी जगत में शोक की लहर दौड़ गई। सोमवार शाम को अंतिम संस्कार हुआ।


जयपुर में 5 फरवरी 1934 को जन्मे डॉ. कृष्णकुमार शर्मा देश के प्रख्यात शैली वैज्ञानिक आलोचक थे। भौतिक शास्त्र में एमएससी करने के बाद वे हिन्दी क्षेत्र में आए और 1964 में ‘राजस्थान की लोक गाथाएं विषय पर पीएचडी उपाधि प्राप्त की। प्राध्यापक रहते हुए एमए संस्कृत की उपाधि प्राप्त की। उदयपुर विश्ववि‌द्यालय एवं जम्मू विश्ववि‌द्यालय में रहने के बाद वे केन्द्रीय हिन्दी संस्थान में प्रोफेसर रहे। संस्कृत एवं हिन्दी के काव्य शास्त्र के साथ शैली वैज्ञानिक समीक्षा के क्षेत्र में उनका शोध कार्य प्रायोगिक रूप से अभिनव रहा। वे व्यास फाउण्डेशन की पुरस्कार समिति में निर्णायक सदस्य भी रहे। शैलीवैज्ञानिक आलोचना में उन्होंने सैद्धान्तिक प्रतिमानों का भारतीय काव्यशास्त्र के सन्दर्भ में विवेचन किया है। डॉ. शर्मा जम्मू विश्वविद्यालय के बाद वे केन्द्रीय हिन्दी संस्थान आगरा के हैदराबाद केन्द्र में नियुक्त हुए। एक वर्ष के बाद उदयपुर लौट आए। फिर 5 वर्ष हिन्दी विभाग में रीडर एवं अध्यक्ष पद पर रहे। 1984 में केन्द्रीय हिन्दी संस्थान आगरा में हिन्दी भाषा एवं साहित्य के प्रोफेसर पद पर नियुक्ति हुई और वहीं से 1994 में सेवानिवृत हुए।
शैली विज्ञान की रूपरेखा (पुरस्कृत) गद्य संरचना, शैली वैज्ञानिक विवेचन (पुरस्कृत), शैलीवैज्ञानिक आलोचना के प्रतिदर्श, भारतीय काव्यशास्त्र : शैलीवैज्ञानिक संदृष्टि, बगड़ावतों की लोकगाथा, समकालीन कविता: समय की साक्षी आदि उनकी चर्चित पुस्तकें रही है। मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रन्थ अकादमी की ओर से प्रकाशित हिन्दी स्वरूप और प्रयोग के वे सहलेखक रहे, जो मध्यप्रदेश के स्नातक पाठ्यक्रमों में हिन्दी भाषा की प्रचलित पुस्तकें रही है।
डॉ. शर्मा ने आचार्य आनन्दवर्धन, कुन्तक, क्षेमेन्द्र एवं वामन के सिद्धान्तों के आधार पर सिद्ध किया कि भारतीय काव्य शास्त्र एवं आधुनिक शैली विज्ञान में समानता है। काव्य भाषा ही संस्कृत आचार्यों का प्रतिपाद्य रहा है और काव्यभाषा ही आधुनिक शैली विज्ञान का भी लक्ष्य है। संस्कृत काव्यशास्त्र, हिन्दी काव्यशास्त्र और भाषा-विज्ञान के समन्वित परिप्रेक्ष्य में उन्होंने व्यावहारिक अनुप्रयोगों से शैलीवैज्ञानिक आलोचना को वस्तुपरक एवं सहृदय संवेदी बनाने की दिशा प्रशस्त की।
उदयपुर विश्वविद्यालय में आते ही डॉ. कृष्णकुमार शर्मा को भाषाविज्ञान विषय पढ़ाने का अवसर मिला। यहीं पर उन्होंने नियमित छात्र होकर उदयपुर विश्ववि‌द्यालय से संस्कृत में एमए किया और स्वर्ण पदक प्राप्त किया। वे कहते थे कि आनन्दवर्धन और उनके ध्वनि सिद्धान्त ने उनके अध्यापक जीवन की दिशा ही बदल दी। ध्वनि सिद्धान्त में उन्हें अपार संभावनाएं दिखलाई पड़ी और इसलिए उन्होंने ध्वनि सिद्धान्त का काव्य शास्त्रीय, सौन्दर्यशास्त्रीय और समाज मनोवैज्ञानिक अध्ययन विषय पर इलाहाबाद विश्वविद्यालय से डी. लिट की उपाधि प्राप्त की।

Related posts:

विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस पर अजमेर मंडल के रेलवे स्टेशनों पर प्रदर्शनी लगाई
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस का भव्य आयोजन
उदयपुर के 470वें स्थापना दिवस पर सिटी पेलेस के जनाना महल में सजा ‘आर्ट एण्ड क्राफ्ट’ बाजार
जिंक पर्यावरण संबंधी बेस्ट प्रेक्टिसेज के लिए सीआईआई राष्ट्रीय पुरस्कार 2021 से पुरस्कृत
पीआईएमएस हॉस्पिटल को मिली एनएबीएल की मान्यता
उद्योगों को दी जा रही सब्सिडी और इंसेंटिव का व्यापारी उठाएं लाभ : गोयल
हिन्दुस्तान जि़ंक ने बड़े पैमाने पर शुरु किया वृक्षारोपण अभियान 'वन-महोत्सव'
नारायण सेवा शाखा सम्मेलन सम्पन्न
निराश्रित बालगृह के बच्चों का दंत परीक्षण
HINDUSTAN ZINC WINS NATIONAL SAFETY AWARD
श्वान को दी सम्मान से अंतिम विदाई
Vedanta Chairman Anil Agarwal conferred with Mumbai Ratna Award

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *