गंभीर रुमेटाइड गठिया रोग से पीडि़त 38 वर्षीय मरीज की सफल नी रिप्लेसमेंट सर्जरी

पारस जेके अस्पताल में सबसे कम उम्र के मरीज का पहला मामला
उदयपुर।
पारस जेके अस्पताल में ऑर्थोपेडिक एवं ज्वाइंट रिप्लेसमेंट सर्जन डॉ. आशीष सिंघल के नेतृत्व में टीम ने रूमेटाइड अर्थराइटिस (गंभीर रुमेटाइड गठिया) से पीडि़त 38 वर्षीय मरीज का सफलतापूर्वक टोटल जॉइंट रिप्लेसमेंट किया है। इतनी छोटी उम्र के मरीज का अस्पताल में यह पहला ऐसा मामला है। 
मरीज़ की मेडिकल हिसट्री के मुताबिक उसे 24-25 साल की उम्र से ही रूमेटाइड अर्थराइटिस शुरू हो गया था जिससे उनका बायां घुटना धीरे-धीरे क्षतिग्रस्त होता चला गया। बीते 3-4 वर्षों से ऐसी स्थिति हो गई कि उनका कुछ कदम चलना या दैनिक काम करना भी मुश्किल हो गया था। मरीज होटल इंडस्ट्री में नौकरी करता था लेकिन इस बीमारी के कारण उसकी नौकरी भी छुट गई। एक फिजियोथैरेपिस्ट ने मरीज को पारस जेके हॉस्पिटल के डॉ. आशीष सिंघल को दिखाने का सुझाव दिया जिसके बाद मरीज पारस जेके अस्पताल पहुंचें और डॉ. आशीष सिंघल से परामर्श किया। 
डॉ. आशीष सिंघल ने बताया कि मरीज वरुण अरोड़ा के बाएं घुटने में दर्द, सूजन और विकृति थी। जांच में पता चला कि उसके घुटने में 50 डिग्री तक विकृति है। एक्सरे में पता चला कि उसका बायां घुटना पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुका है। सारी जांचें और उनकी स्थिति को देखते हुए टोटल ज्वाइंट रिप्लेसमेंट सर्जरी करने का निर्णय लिया और मरीज को विश्वास दिलाया कि सर्जरी के बाद वह पूरी तरह स्वस्थ और बेहतर हो जाएंगे। मरीज की सर्जरी सफल रही और अब वह आराम से चल सकता है और अपना दैनिक कार्य कर सकता है। डॉ. आशीष सिंघल ने बताया कि नी रिप्लेसमेंट सर्जरी की सफलता की दर लगभग 98 प्रतिशत से अधिक है। नी रिप्लेसमेंट सर्जरी में क्षतिग्रस्त जोड़ को कृत्रिम जोड़ से बदल दिया जाता है, जिसकी मदद से मरीज शारीरिक गतिविधियां और अपने कार्य कर सकता है। नी रिप्लेसमेंट सर्जरी से घुटने के दर्द में राहत मिलती है। आमतौर पर गंभीर रुमेटाइड गठिया की बीमारी इतनी कम उम्र में नहीं होती है और पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में गंभीर रुमेटाइड गठिया की बीमारी के ज्यादा मामले देखने को मिलते हैं। डॉ. आशीष नेकहा कि पारस जेके हॉस्पिटल में कंप्यूटर नेविगेशन 3 डी असिस्टेंट नी रिप्लेसमेंट सर्जरी हो रही है जिससे मरीज की रिकवरी बहुत जल्दी होती है और खून भी कम बहता है। सर्जरी के बाद टांके भी आमतौर पर गलने वाले लगाए जाते हैं जो ऊपर उठ कर नहीं आते हैं उससे रिकवरी में बहुत फायदा होता है और मरीज सर्जरी के दूसरे दिन हीं खड़े होकर चलने लगता है।

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