उदयपुर। अल्जाइमर रोग एक मानसिक विकार है, जिसके कारण मरीज की याददाश्त कमजोर हो जाती है। उसका असर दिमाग के कार्यों पर पड़ता है जिससे रोजमर्रा के कार्य प्रभावित होते हैं। यह बात वल्र्ड अल्जाइमर डे पर पारस जे. के. हॉस्पिटल के न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. मनीष कुलश्रेष्ठ ने कही। उन्होंने कहा कि आमतौर पर यह रोग वृद्धावस्था में दिमाग के उत्तकों को नुकसान पहुंचने के कारण होता है। इसके लक्षण 10 साल बाद व्यक्ति में दिखाई देने लगते हैं। यह डिमेंशिया का सबसे आम प्रकार है, जिससे व्यक्ति की याददाश्त, सोचने की क्षमता, रोजमर्रा की गतिविधियां प्रभावित होती हैं।
डॉ. मनीष कुलश्रेष्ठ ने कहा कि अल्जाइमर आनुवंशिक कारकों, डिप्रेशन, सिर की चोट, उच्च रक्तचाप, मोटापा, निम्न वर्ग व कम शिक्षित लोगों में अधिक होता है। बीमारी के बाद की अवस्था में अल्जाइमर के मरीज के व्यवहार में बदलाव आने लगते हैं, जैसे गुस्सा, चिड़चिड़ापन, अपने शब्दों को दोहराना, बेचैनी, एकाग्रता में कमी, बेवजह कहीं भी घूमते रहना, खो जाना, रास्ता भटकना, मूड में बदलाव, अकेलापन, मनोवैज्ञानिक समस्याएं जैसे डिप्रेशन, हैल्यूसिनेशन भी हो सकती हैं। शुरुआत में लक्षणों को देखकर अक्सर लोग यह समझते हैं कि ऐसा उम्र बढऩे के कारण हो रहा है। अल्जाइमर का कोई निश्चित इलाज नहीं है, लेकिन शुरुआती अवस्था में बीमारी को पकड़ कर मरीज के जीवन की गुणवत्ता को बेहतर बनाया जा सकता है। इसके लक्षणों का पता चलते ही न्यूरोलॉजिस्ट से संपर्क कर निदान पाया जा सकता है।